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साहित्य और समाज

आज की अतिथि सम्पादक


माया मालवेन्द्र बदेका
उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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साहित्य की समाज में कल और आज की भूमिका देखी जाये तो बहुत ज्यादा फर्क आया है। एक पंक्ति ऐसी होती थी की पूरे देश में राष्ट्र प्रेम की लहर दौड़ जाती थी और आज एक पंक्ति ऐसी स्थिति पैदा करती है कि शर्मिंदगी से नजरें झुक जाती है।
ऐ मेरे वतन के लोगों।
और
मुन्नी बदनाम हुई।
कहां से कहां आ गये हम। क्या यही सब युवाओं के बीच, बच्चों के बीच परोसा जाना चाहिए।
साहित्य समाज को बहुत कुछ देता है!
साहित्य अपने मनोभावो को व्यक्त करने का, मनुष्य के लिये सबसे अच्छा साधन है!
कुछ संदेश कुछ शिक्षा –
साहित्य से देश की सभ्यता देश की संस्कृति की पहचान होती है हमारा देश जग मे सभ्यता और संस्कृति के लिये विख्यात है !
विगत कुछ समय से बहुत ही निम्न स्तर के लेखन ने समाज को, देश को अलग ही जगह ला खड़ा किया है !
साहित्य और साहित्यकारो से समाज को अच्छा से अच्छा संदेश अच्छी से अच्छी शिक्षा मिलती है ! राष्ट्र को अग्रणी बनाने में ज्ञानवान, विचारवान, विद्वजनों की बहुत आवश्यकता होती है, और है।
कलम को सशक्त बनाना है, समाज और देश के उत्थान लिए कलम का धारदार होना बहुत आवश्यक है ।
विकृत मानसिकता का साहित्य, संदेश फैलाने वालो के विरुद्ध साहित्यकारो द्वारा, एक प्रयास सतत जारी रहना चाहिए!
यही कहूंगी की उच्चतम विचारों से ह्रदय में आनन्द की अनुभूती होती है और आनन्द यदि पराकाष्ठा तक हो तो मन शान्ति ही शान्ति महसूस करता है। साहित्य, यदि उच्च विचारो से ओतप्रोत होता है तो समाज राष्ट्र पर और विश्व पर उसका असर होता है, साहित्यकारों की विश्व शांति स्थापना में अमूल्य भूमिका होती है। एक निर्मल मन शांति प्रिय व्यक्तित्व के चरित्र निर्माण में शांति स्थापना में, माँ, गुरु और सत साहित्य की अहम भूमिका होती है।
यदि बच्चा उद्डंता करता है और माँ उसे रोकेगी तभी वह समझ पायेगा, यह गलत है, शिष्य के प्रति गुरु भी वही व्यवहार निर्वहन करता है , तभी एक सत चरित्र व्यक्तित्व का निर्माण होता है। सुंदर साहित्य भी मन को इसी दिशा में मोड़ता है और यह एक शांति मार्ग का पथ बन जाता है। साहित्य सृजन ऐसा हो जो मन को झंकृत कर दे, मन को आल्हादित करे मन को करुणामयी कर दे। कुछ वर्षो से देखने में आ रहा है की कुछ अजीब तरह के गायन कुछ लिखित सवांद विशेष जो युवाओ को प्रभावित करते है अपनी गहरी पैठ करते जा रहे है। राष्ट्र के प्रति समर्पण, विश्व में फैलती जा रही अशांति से, उन्हें कोई सरोकार नही है। यह वही उम्र होती है जो दिखावटी राह पर शीघ्र अग्रसर होती है, और धीरे-धीरे व्यग्रता का रूप लेती है।
महात्मा विदुर जी के अनुसार –
षडेव तु गुणा :पुंसा न हातव्या: वदाचन
सत्यं दानमनालस्यमनसूया क्षमा धृति;
अर्थार्थ :-
मनुष्य को सत्य भाषण, दान देना, पुरुषार्थ करना, चुगली न करना (ईर्ष्या न करना), क्षमाशीलता और धैर्य इन छ: गुणों का त्याग कभी नही करना चाहिए। इन गुणों से शोभित व्यक्ति सदैव शांति प्रिय रहता और आसपास के वातावरण को भी शांति मय बनाता है। बंधुत्व की भावना से ओतप्रोत होकर सबको एकसूत्र में पिरोने का कार्य करता है।
हर राष्ट्र का साहित्य अपने आप का प्रतिबिम्ब होता है। जितना साहित्य का पतन होता जाता है उतना राष्ट्र अधोगति की तरफ जाता है
अंत में यही कहना चाहूंगी श्री मुख से निकला एक एक अक्षर परम् ब्रह्म है
न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्दते।
तत्स्वयं योगसंसिद्ध;कालेनात्मनि विन्दति। [४] [३८ ]
श्रद्धा वांल्लभते ज्ञान तटपर : सयंतेन्द्रिय ;
ज्ञानं लब्ध्वा परां शांतिमचिरेणाधिगच्छति। [४ ] [३९ ]
अर्थ :- इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला नि:संदेह कुछ भी नही है। उस काल से कर्म योग के द्वारा शुद्धान्त: करण हुआ मनुष्य अपने आप ही आत्मा में पा लेता है। [३८ ] [४ ]
जितेन्द्रिय, साधन परायण और श्रद्धावान मनुष्य ज्ञान को प्राप्त होता है तथा ज्ञान को प्राप्त होकर वह बिना विलम्ब के तत्काल ही भगवत्प्राप्तिरूप परम् शांति को प्राप्त हो जाता है। [३९][४ ]

कुछ हमारे संदेश, कुछ शिक्षा, साहित्य और साहित्यकारों से समाज को अच्छा से अच्छा संदेश अच्छी से अच्छी शिक्षा मिलती हैं, दी जा सकती है। यह हमारा कर्तव्य है, उत्तरदायित्व है। यदि कलम को अपने लिए सशक्त बनाना है तो, समाज और देश के उत्थान के लिए हमारी कलम का धारदार होना बहुत आवश्यक है।
विकृत मानसिकता का साहित्य फैलाने वालो के विरूद्ध, प्रबुद्ध साहित्यकारों द्वारा एक प्रयास सतत जारी रहना चाहिए। हमारे समाज में फैली कुरीतियों को दूर करना, साहित्यकार का बहुत बड़ा योगदान होता है। परिवार और घर से समाज, समाज से जिला, राज्य, और राज्य से राष्ट्र तक एक कड़ी होती है, जो धीरे-धीरे एक नकारात्मक या सकारात्मक सोच पैदा करती है। सदैव सत साहित्य चिंतन से लोगों में आपसी भाईचारा, सद्भाव और देशभक्ति, देशप्रेम बढता है, जागृत होता है। अतः साहित्यकारों का विशेष कर्त्तव्य होता है कि अपनी लेखनी से सदैव उच्च स्तर का साहित्य समाज में लाये। प्रभावशाली प्रवाह, शब्दो का प्रवाह सतत बहना चाहिए।

क्योंकि :-
कलम – कमाल करती हैं।
कलम – शब्दों से वार करती है।
कलम – जीवन में जोश भरती है।
कलम – जीवन में आंनद भरती है।
कलम – देशप्रेम जागृत करती है।
कलम – रोतो को हंसाती है।
कलम – मर्यादा के मायने बनाती हैं।
कलम – चित्रकार है।
कलम – रंगकार है।
कलम – मन का दर्पण है।
कलम – शब्दों का जाल बुनती है।
कलम – को विकृत न बनाओ।
कलम – को सुघड़ बनाओ।
कलम – सुदृढ बनाओ।
क्योंकि जिस सदी में हम हैं, जिस आधुनिकता के दौर से हम गुजर रहें हैं, उसके लिए ऐसा न हो की हमें स्वच्छ साहित्य अभियान चलाना पड़े।

परिचय :-
नाम – माया मालवेन्द्र बदेका
पिता – डाॅ. श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय
माता – श्रीमती चंद्रावली पान्डेय
पति – मालवेन्द्र बदेका
जन्म – ५ सितम्बर १९५८ (जन्माष्टमी) इंदौर मध्यप्रदेश
शिक्षा – एम• ए• अर्थशास्त्र
शौक – संस्कृति, संगीत, लेखन, पठन, लोक संस्कृति
लेखन – चौथी कक्षा मे शुरुवात हिंदी, माळवी,गुजराती लेखन
प्रकाशन – पत्र पत्रिका मे हिन्दी, मालवी में प्रकाशन।
पुस्तक प्रकाशन – १ मौन शबद भी मुखर वे कदी (मालवी) २ – संजा बई का गीत
साझा संकलन – काव्य गंगा, सखी साहित्य, कवितायन, अंतरा शब्द शक्ति, साहित्य अनुसंधान
लघुकथा – लघुत्तम महत्तम, सहोदरी
माळवी – मालवी चौपाल (मालवी)
विधा – हिंदी गीत, भजन, छल्ला, मालवी गीत, लघुकथा हिन्दी, मालवी व्यंग, सजल, नवगीत, चित्र चिंतन, पिरामिड, हायकू, अन्य विधा मे रचना!
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान, झलक निगम संस्कृति सम्मान, श्रीकृष्ण सरल शोध संस्थान गुना द्वारा सम्मान, संस्कृत महाविधालय थाईलैंड द्वारा सम्मान, शब्द प्रवाह सम्मान, हल्ला गुल्ला मंच सम्मान रतलाम, मालवी मिठास मंच द्वारा, नारी शक्ति मंच जावरा, औदिच्य ब्राह्मण समाज,गुरूव ब्राह्मण समाज द्वारा सम्मानित, प्रतिकल्पा सम्मान जमुनाबाई लोकसंस्थान उज्जैन, द्वारा मालवी लेखन के लिए पांडुलिपी पुरस्कार, दैनिक अग्निपथ कवि साहित्यकार सम्मान, शुभसंकल्प संस्था इंदौर, शुजालपुर मालवी न्यास से सम्मानित, संवाद मालवी चौपाल, संजा और मांडना के लिए पुरस्कार
मुख्य ध्येय – हिंदी के साथ आंचलिक भाषा और लोककृति विशेष संजा को जीवंत रखना, बेटी बचाओ मुहिम मे मालवी हिन्दी मे पंक्तिया, संजा, मांडना संरक्षण पच्चीस वर्ष से अधिक भारत से बाहर रहकर हिंदी लेखन का प्रसार, आंचलिक बोली मालवी का प्रसार, मारिशस, थाईलैंड, हिंदी सम्मेलन में उपस्थिति व थाईलैंड में हिंदी गोष्ठी समूह में सहभागिता की।
संरक्षक – झलक निगम संस्कृति, संरक्षक शब्द प्रवाह
संस्थापक – यो माया को मालवो, या मालवा की माया।
अध्यक्ष – संस्कृति सरंक्षण
पुरस्कार प्रदत – “मालवा के गांधी” डॉ लक्ष्मीनारायण पांडेय “मालवा रत्न” स्मृति पुरस्कार!
निवासी – उज्जैन (म.प्र.)


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