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अपना बसंत ऋतु

विकास कुमार
औरंगाबाद (बिहार)
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हमारे मन में हरियाली सी जब आई है।
फूलों ने जब अपनी गंध को भी उड़ाई है।।

कोयल भी गाती है जब कुहू-कुहू,
भंवरे भी दिल से करते रहते है गुंजार।

आई है इस रंग बिरंगी रंगों वाली
इन सभी तितलियों की मौज बहार।।

फूलों पर हैं भवरे अपना रंग जमाए।
आम के पेड़ भी अपना मोजर दिखाए।।

हमलोग करने ऋतुराज का स्वागत आए।
खेतो में सरसो भी बैठा अपना फूल खिलाए।।

हरियाली का मौसम है जिसे कहते है बसंत ऋतु।
न सर्दी है न गर्मी है देखो आया अपना बसंत ऋतु।।

घर में आया नया फसल और साथ में नया उमंग।
चलो बनाकर खाएं पकवान अपनो के संग।।

परिचय :विकास कुमार
निवासी : दाऊदनगर औरंगाबाद (बिहार)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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