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बदलाव

डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय
इंदौर, (मध्यप्रदेश)
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काशीनाथ अभी बगीचे से लौटकर आँगन में आकर बैठे थे कि पुत्र शंभुनाथ ने आकर प्रणाम किया।
“आज कैसे फुर्सत मिल गई?” शम्भू ने कहा- “कुछ नहीं आपसे आवश्यक बात करना थी इसीलिए आपके पास आया हूँ।” “बोलो क्या बात है?” “आपको तो पता ही है कि नीलम, सूरज बड़े हो रहे है, उन्हें पढ़ने के लिए कमरे की जरूरत है। मैंने सोचा आपको हाल के एक भाग में शिफ्ट कर दे तो अच्छा रहेगा। आप चिंता ना करे प्लाई से उस भाग को बनवा लेंगे।’
उसने एक सांस में सारी बात कह दी। काशीनाथ मुस्करा दिए, फिर बाजार में सब्जी लेने चल दिए।
बहु अनामिका सोचने लगी- “पापा जी की आज कुछ ज्यादा समय से लग गया तरकारी लाने में!” इतने में काशीनाथ जी घर आ गए।
“शम्भू कहा है?” “ऑफिस गए है” बहू ने कमरे से जवाब दिया।
शाम को लौटने पर उन्होंने शम्भू को अपने पास बुलाकर कहा- “बहुत दिनों से देख रहा हूँ, तुम सब कितनी ज्यादा मेहनत करते हो। मेरा विचार है कि सबको कही घूमने जाना चाहिए। “सही कहा पिताजी, अनामिका भी बहुत दिनों से कह रही थी, परन्तु अभी हाथ तंग है।” काशीनाथ ने कहा- “उसकी चिंता तुम ना करो, अभी मैं हूँ। तुम सब परसो ही केरल की यात्रा पर जा रहे हो।”
तय समय पर बच्चों को दुलार के साथ ट्रेन से विदा किया। घर आकर उन्होंने कुछ लोगों से चर्चा के उपरांत तत्काल मकान बेच दिया।
उन रुपयों से अनाथालय के पासवाली जमीन खरीद ली। जाते समय पड़ोसी रोशनलाल को कहा- “मेरा बेटा आये तो यह लिफाफा दे देना। “कुछ दिन बाद शम्भु नाथ यात्रा से लौटता है। घर पर पिता को नहीं सिर्फ एक फ्लैट की चाबी पाता है।

परिचय :- डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय
शिक्षा : पीएच.डी, एम.ए हिन्दी साहित्य, बी.जे.एम.सी, आयुर्वेद रत्न।
निवासी : इंदौर, (मध्यप्रदेश)
रुचि : लेखन,पठन,पर्यटन
प्रकाशन : विभिन्न पत्र, पत्रिकाओं में नियमित बाल कहानी, लघुकथा, कविता का प्रकाशन।
सम्प्रति : निजी महाविद्यालय में हिन्दी भाषा में सहा.प्राध्यापक।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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