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कई रुप है नारी के

रामसाय श्रीवास “राम”
किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़)

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कई रुप है नारी के,
हर रुप में नारी महान।
पुत्री भगिनी पत्नी,
जननी है देवी समान।।

बेटी बनकर आती,
स॑ग में है खुशी लाती ।
बाप की ऑंखो में,
ममता ये बरसाती।।
गुंजती घर ऑंगन में,
किलकारी मधुर मुस्कान
कई रुप है नारी के
हर रुप में नारी महान।।

भैया की प्यारी है,
बहना ये दुलारी है।
इसकी मिठी बातें,
इस जग से न्यारी है।।
मिलकर खेलें कूदें,
लगते हैं बड़े नादान
कई रुप है नारी के
हर रुप में नारी महान

फिर ये पत्नी बनतीं,
जीवन भर संग रहती।
सुख हो या दुख जो भी,
मिलकर है सब सहती।।
बहू रुप में पाती है,
ससुराल में ये सम्मान
कई रुप है नारी के
हर रुप में नारी महान।।

माता का रुप महान,
दूजा नहीं इसके समान।
ममता की ये मूर्ति,
करुॅणा की है ये खान।।
ऑचल की छांव तले,
पाते सुख है भगवान
कई रुप है नारी के
हर रुप में नारी महान।।

श्रृंगार है श्रृष्टि की,
ये नूर है दृष्टि की।
ये पूर्ण है अपने में,
मूरत है तुष्टि की।।
इनकी जो कदर करता,
सच में है वही इंसान
कई रुप है नारी के
हर रुप में नारी महान।।

नारी को सताओगे,
ख़ुद ही पछताओगे।
इनकी जो आह लगे,
तो सह नहीं पाओगे।।
हैं राम सभी जग में,
नारी की ही संतान
कई रुप है नारी के
हर रुप में नारी महान।।

परिचय :- रामसाय श्रीवास “राम”
निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़)
रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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