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एक मिसाल

शत्रुहन सिंह कंवर
चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी
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तपती है ये बदन धुप में
कोयला की आस है
मिली सोन की खान
कर कर्म तु यूं ही सदा बढ़कर
ना कर तु ये लचार मन, तन को
करता चल यूं ही पल पल
मंजिल मिलती है मेहनत से
थके ना कभी ये हैसला आपकी
होगी फिर ओ आहट कल की
कांटे बिछे पड़े हैं राहों में
बना तू इसे मखमली गुलाब सा
बनो तुम भी एक मिशाल
देखकर हंसते ये दुनिया तुम पर
हंसकर रह जाएं ये वो पल
ऐसी कर तु नित्यनया सवेरा
जो हो सभी के लिए दया की सागर
सागर सा अथाह है जीवन में
यूं ही तुम करो साहिल सा पकेरा
तपती है ये बदन धुप में
यूं ही सदा पल पल।

परिचय : शत्रुहन सिंह कंवर
निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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