Thursday, November 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

हमारी संस्कृति हमारा आस्तित्व

अशोक पटेल “आशु”
धमतरी (छत्तीसगढ़)
********************

मानव जीवन पुरी तरह से संस्कृति पर आधारित होता है। बिना सस्कृति के जीवन निर्वाह सम्भव नही है। संस्कृति हमारी और अपने देश की पहचान होती है। वैसे तो हर देश की हर प्रांत की अपनी अलग-अलग संस्कृति होती है। और सभी को अपनी संस्कृति से बेहद प्यार भी होता है। और इसी संस्कृति से ही मानव, समाज, देश उन्नति-प्रगति के मार्ग पर अग्रसर हो पाता है। और इसी से ही वह अपनी परम्पराएँ रीति-रिवाज, धर्म-आस्था-विस्वास, सामाजिक-एकता, खान-पान, रहन-सहन को अक्षुण बना पाता है। और इस प्रकार से वह अपनी संस्कृति का पोषण कर पाता है। और वह पुष्पित पल्लवित हो पाता है। आने वाली नई पीढ़ी के लिए वह मार्गदर्शन का काम करती है। और उसी मार्ग पर चल कर वह अपने आप को एक सुसभ्य इंसान बनाने में सफल हो पाता है। एक तरह से यह संस्कृति हमारी थाती है। हमारा धरोहर है। हमारी पूंजी है।
हमारे देश मे नाना प्रकार के भाषा-भाषी, जाति-सम्प्रदाय, धर्म के लोग रहते हैं। जिनकी अपनी अलग-अलग परम्पराएँ हैं। अलग-अलग रीति-रिवाज, खान-पान हैं। लेकिन आपस मे भाईचारा, एकता, सद्भावना है। और यही संस्कृति उन्हें आपस मे एक सूत्र में पिरो कर रखती है। यही हमारी संस्कृति की पहचान है। सबसे बड़ी विशेषता है।
बिना संस्कृति के हमारा अपना कोई अस्तित्व नही है। हमारी संस्कृति ही हमे मान-सम्मान, अधिकार, प्रदान करती है। हमारी पहचान बनाती है। अपनी संस्कृति अपने धर्म की सुंदर परिभाषा युग पुरुष स्वामी विवेकानंद जी ने बताया। जिसको कभी भुलाया नही जा सकता।अगर किसी ने हमारी संस्कृति और धर्म को विश्व पटल में पहचान दिलायी तो वह थे स्वामी विवेकानंद जी। और संस्कृति के महत्व उपयोगिता को किसी ने बताया तो वह थे विवेकानन्द जी।
अमेरिका शिकागो के धर्म सम्मेलन में जब वो ‘भाइयों और बहनों” कह कर सम्बोधन शुरू किया तो सम्मेलन में आए पुरी दुनिया के लोग आवाक रह गए। और जोरदार तालियों से उनका सम्मान किया। “भाइयों और बहनों” का सम्बोधन हमारी अपनी संस्कृति थी। हमारे देश की पहचान थी। जिसको लोगों ने पहिली बार सुना। और मंत्रमुग्ध हो गए। और पुरी दुनियाँ के लोग भारत की संस्कृति से साक्षातकार हो पाए।
आज आधुनिकता के नाम पर लोग अपनी संस्कृति को भुला बैठे हैं। अपने धर्म को भुला बैठे हैं। और पाश्चात्य संस्कृति का अँधाधून अनुकरण कर रहे हैं। यह हमारे मानव जाति, समाज के लिए, अपने देश के लिए खतरनाक है। हम धीरे-धीरे अपनी संस्कृति को खोते जा रहे हैं। हमारा अस्त्तिव धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। लोग जाति का नाम पर भी खिलवाड़ कर रहे हैं। धर्म परिवर्तन हो रहा है। आने वाली नई पीढ़ी नशे के गिरफ्त में आकर अपने आप को बर्बाद कर रहे हैं। हमरी अपनी भाषा हिंदी को पढ़ना लिखना बोलना बंद कर दिए हैं। सादाजीवन को त्याग कर लग्जीरियस जीवन जी रहे हैं। मांसाहारी भोजन को महत्व दे रहे हैं। खान-पान, बोल-चाल, रहन-सहन, पहनावा सारी चीजें बदल गई हैं। कुल मिलाकर हम अपनी संस्कृति के साथ अन्याय और खिलवाड़ कर रहे हैं। अपनी संस्कृति का हम ह्रास कर रहे हैं। यदि समय रहते हम नही सुधरे तो आने वाला दिन हमारे लिए खतरनाक हो सकता है। हमारा अस्त्तित्व ही लगभग खत्म हो जाएगा।

परिचय :अशोक पटेल “आशु”
निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़)
सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *