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माँ का पल्लू

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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माँ पहनती थी सूती साड़ी
उसे धोती कहा जाता था
माँ की रंगबिरंगी साड़ी का
वह प्यारा सा लम्बा पल्लू
उसकी सर की शोभा बन
काँधे से उतर कर हमेशा
सामने लटका रहता था
मानो खूँटी पर टँगा हुआ
मुलायम तौलिया ही हो
आँखे मलते जब उठता
माँ के मुलायम पल्लू में
सुहाना सवेरा होता मेरा
कभी कुछ खाऊँ-पीयू
पल्लू रुमाल बन जाता
बिजली जाने पर पंखा
धूप से बचाने को छाता
ट्रेन बस की खिड़की पर
वह पल्लू ही काम आता
आज भी भुला न पाया
उस तमाम मसालों की
महक से भरे पल्लू को
बाबा व मास्टर जी की
डाँट पर ढाल बन जाता
ढुलकते आँसुओं को पोछ
गुलाबी गालों को सहलाता
अपना लहराता पल्लू भी
माँ ले गई अपने साथ
याद में आँखें भर आती
दिल ढूंढता उसे बारम्बार

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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