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डाॅ. दशरथ मसानिया
आगर मालवा म.प्र.
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(विनम्र शब्दांजलि)
भारत मां की लाड़ली, गाये गीत हजार।
सुर संगीत खजान है, कहत है कवि विचार।।हे सुर देवी कंठ सुहानी।
लता नाम से सब जग जानी।।मास सितंबर सन उनतीसा।
जन्मी बेटी सुर की धीसा।।इंदुर नगरी खुशियां छाई।
मातु अहिल्या मन मुसकाई।।पंडित दीना पिता कहाये।
मां सेवंती गोद खिलाये।।ज्योतिष हेमा नाम बताया।
लता नाम को पिता धराया।।सुर कोकिल है नाम तुम्हारा।
राग सुनाती नित नव प्यारा।।सुर सम्राज्ञी भारत कोकिल।
मधुर कंठ से जीते सब दिल।।आशा, मीना, ऊषा बहिना।
हृदयनाथ भाई जग चींहा।।पांच साल की आयु पाई।
नाटक अभिनय धूम मचाई।।प्रथम गुरु थे तात तुम्हारे।
जो संगीत कला रखवारे।।राग धनाश्री पिता सिखाया।
फिर कपूरिया को समझाया।।तेरह बरस की उम्र थी भाई।
पिता भूमिका आप निभाई।।सन पैंतालिस मुंबई आई।
अमन अली से शिक्षा पाई।।नूरजहां, बेगम शमशादा।
गायन में ऊंची मर्यादा।।उनसे भी आगे जब आईं।
फिल्म जगत ने दई बधाई।।पार्श्वगायिका फिल्म अनेका।
गाये गाने एक से एका।।उड़न खटोला, मदर इण्डिया।
बागी, देख कबीरा रोया।।बैजु बावरा, मधुमति गाया।
चोरी-चोरी, मेरा साया।।प्रेम पुजारी, हीरा रांझा।
लैला मजनू, आंधी सांझा।।विजय, फांसले, लव स्टोरी।
मासुम, सागर, गाया होरी।।रफी, किशोरा के संग गाया।
मुकेश, मन्ना साथ निभाया।।पद्माभूषण अरु विभूषण।
दादा साहब पाया शुभ क्षण।।राज्यसभा में तुम्हें बुलाया।
राजनीति का मान बढ़ाया।।भारत रतन तुम्हीं ने पाया।
सुनकर सारा जग हरषाया।।मेरे वतन को जब तुम गाया।
जन-जन के दिल को धड़काया।।सैनिक भी नत मस्तक होते।
विदा जान के हम सब रोते।।बसंत पांचम शुभ दिन पाया।
सरस्वती ने तुम्हें बुलाया।।अजर-अमर तुम सुर की देवी।
गायक-वादक तुमको सेवी।।सरस्वती की तुम हो बेटी।
भारत माता की हो चेटी।।अंत तिरंगा तुमको भाया।
छोड़ देह परमातम पाया।।उन्नीस सौ उनतिस से, दो हजार बाईस।
बाणु बरस जीवन जिया, लता सुरों की धीस।।
परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर उन्हें मध्यप्रदेश शासन तथा देश के कई राज्यों ने पुरस्कृत भी किया है। डॉं. मसानिया विगत १० वर्षों से हिंदी गायन की विशेष विधा जो दोहा चौपाई पर आधारित है, चालीसा लेखन में लगे हैं। इन चालिसाओं को अध्ययन की सुविधा के लिए शैक्षणिक, धार्मिक महापुरुष, महिला सशक्तिकरण आदि भागों में बांटा जा सकता है। उन्होंने अपने १० वर्ष की यात्रा में शानदार ५० से अधिक चालीसा लिखकर एक रिकॉर्ड बनाया है। इनका प्रथम अंग्रेजी चालीसा दीपावली के दिन सन २०१० में प्रकाशित हुआ तथा ५० वां चालीसा रक्षाबंधन के दिन ३ अगस्त २०२० को सूर्यकांत निराला चालीसा प्रकाशित हुआ।
रक्षाबंधन के मंगल पर्व पर डॉ दशरथ मसानिया के पूरे ५० चालीसा पूर्ण हो चुके हैं इन चालीसाओं का उद्देश्य धर्म, शिक्षा, नवाचार तथा समाज में लोकाचार को पैदा करना है आशा है आप सभी जन संचार के माध्यम से देश की नई पीढ़ी को दिशा प्रदान करेंगे।
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