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धरती की पुकार

गौरव श्रीवास्तव
अमावा (लखनऊ)
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मन मे कुछ उमंगे सी जग उठीं हैं,
करें रक्षा धरती माँ पुकारती है।
प्रतिदिन पर्यावरण बिगङ रहा है,
वृक्ष काटे जा रहे हैं, रो रही धरा है।
इस धरा पर कोई तो महा रथी है,
करें रक्षा धरती माँ पुकारती है।।

इस धरा पर पाप इतना बढ़ रहा,
हर व्यक्ति पाप की सीढ़ी चढ़ रहा।
पाप करके लोग यहाँ साधु कहलाते,
साधुओं के वेश में अधर्मी पूजे जाते
ये धरा पवित्रता की भूमि सी है,
करें रक्षा धरती माँ पुकारती है।।

नारी सम्मान क्षीण हो रहा,
अधर्मी व्यक्ति उत्तीर्ण हो रहा।
धर्म का प्रचार कोई न करें,
धरा पर धर्म संकीर्ण हो रहा।
सहनशीलता की ये तो मूर्ति है,
करें रक्षा धरती माँ पुकारती है।।

सहनशीलता का ये प्रमाण हैं,
ये धरा सुधा के ही समान है।
धरती माँ का कष्ट क्या है देखलो,
गौरव के काव्य में ये विघमान है।
जन्म होता है धरा पर,धरती माँ ही तारती है।
करें रक्षा धरती माँ पुकारती है।।

परिचय :- गौरव श्रीवास्तव
निवासी – अमावा (लखनऊ)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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