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आया बसंत

डॉ. अखिल बंसल
जयपुर (राजस्थान)
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बसुधा पर लहराया बसंत
आया बसंत, आया बसंत।

ऋतुराज प्रकृति का प्यार लिए
कोयल की मृदुल पुकार लिए।
भावों का नव संसार लिए,
रस भीनी मस्त बयार लिए।

तरुओं का यौवन वहक रहा,
वन गंधित मादक महक रहा।
सरसों की छटा निराली है,
गाती कोयल मतवाली है।

पागल पलास लो दहक उठा,
‘अखिल’ मानस लख चहक उठा।
मन मस्ती में डूबा जाता,
अनकहा एक सुख में पाता।

फूलों पर भोंरे मंडराते,
खगवाल फुदकते मुस्काते।
मंजरित हो उठे आम्र कुंज,
चुम्बन करता आलोक पुंज।

हो चला शिशिर का पूर्ण अंत,
आया बसंत, आया बसंत।

परिचय :- डॉ. अखिल बंसल (पत्रकार)
निवासी : जयपुर (राजस्थान)
शिक्षा : एम.ए.(हिन्दी), डिप्लोमा-पत्रकारिता, पीएच. डी.
मौलिक कृति :
संपादित कृति : १७
संपादन : समन्वय वाणी (पा.)
पुरस्कार : पत्रकारिता एवं साहित्यिक क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य हेतु- विद्वत्परिषद् पुरस्कार, पत्रकारिता एवं ऋषभदेव, वाग्मिता, छत्रसाल, उम्मीद रत्न एवं अहिंसा रत्न अवार्ड से सम्मानित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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