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संवेदना

माधवी तारे (लन्दन से)
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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ट्रिंग-ट्रिंगsss मोबाईल की रिंगटोन बज रही थी। रखमा की राह देखते-देखते घर के आवश्यक कार्य सम्पन्न कर प्रतिभा जरा-सी लेटी ही थी। ढेरे सारे काम अभी अधूरे थी। ‘बाद में देखूँगी’- कहकर आराम करने के मूड में थी वह, पर दीर्घ काल तक बजती रिंगटोन ने हैरान कर दिया। फोन उठाना ही पड़ा। हैलो !! कौन बोल रहा है? आवाज अपरिचित-सी लग रही थी। मैं बोल रही हूँ मैडम! रखमा बाई की बड़ी बेटी हूँ।
क्या कहना है?
मॅडम जी! आज सवेरे मम्मी फिसलकर गिर गई है। उसके पैर में फ्रैक्चर हुआ है। उसे मैं सरकारी अस्पताल में प्लास्टर लगाने के लिये ले आयी हूँ। आधी-अधूरी बेहोशी की अवस्था में उन्होंने मुझे सिर्फ आपके घर में यह बात सूचित करने को कहा है।

अरे, भगवान! ये कैसी आफ़त आन पड़ी है? अब क्या करूं? काहे का आराम? उठ जाओ, अधूरे सारे काम मुझे ही पूर्ण करने हैं। घर के बाकी सारे लोग ऑनलाइन वर्क फ्राम होम के कारण सुबह से ही अपने-अपने कमरों में बंद हैं। ३-४ सप्ताह तक हिम्मत तो जुटानी पड़ेगी अब !

१०-१२ दिन में ही कामों की त्रासदी से प्रतिभा थक के चूर हो गई। जब सब ठीक चल रहा था, घर का वातावरण चुप्पी साधे जैसा शान्त था। लाइलाज हो उसने एक दिन रसोई घर से अपनी बड़ी बेटी को आवाज लगाई- गुड़िया, जरा मेरी मदद करो, आओ सलाद बना दो! चटनी मिक्सर में पीस दो। टेबल पर प्लेटे लगा दो बेटा। गुड़िया- सॉरी माँ! मुझे मेरे स्वयं के खूब सारे काम निपटाने हैं। आज मैंने पुरानी किताबों को व्यवस्थित करने के लिए मेरे कमरे में फैला रखा है। मैं नहीं आ सकती हैं। ये बाई को अभी पैर तोड़कर, बहाना बनाने की पड़ी थी क्या ! ८-१० दस दिन से घर में कोहराम मच रहा है।
प्रतिभा ने दूसरी बेटी को आवाज दी। वो नहीं, तो तू ही आजा छोटी। उसने भी नकार दिया। मुझे खूब सारा होमवर्क पूरा करना है। इसके अलावा परीक्षा भी पास आ गई है माँ। बाई का एक्सीडेंट याने घर में ८-१० दिन से चिड़चिड़ाहट मच गयी है।
क्या जरूरत थी उसे फिसलन वाली जगह पर पाँव रखने की। अपनी अनुपस्थिति से किसी के घर में कितना कोहराम छा सकता है- उसे सोचना चाहिए था न…
प्रतिभा बहू के पास जाकर बोली- बेटा कोई जान-बूझ कर करता है क्या? होनी को कौन टाल सकता है। लॉक डाउन में भी छिप-छिपाकर वो आयी थी न अपने यहाँ!
मुझे फुरसत नहीं है मम्मीजी, यह सब सुनने की। बहू जरा बूढ़ी दादी मां के कमरे में जा कर देख लो ना, उन्हें कुछ चाहिए तो नहीं- प्रतिभा अनुनय भरे स्वर में बोली। मम्मीजी सॉरी, आप देख रहे हो ना मैं सवेरे से ऑनलाइन कंपनी के काम मे लगी हुई हूँ। आज सारे डॉक्युमेंट्स नहीं भेजे गए, तो तनख्वाह रोक लेगी कंपनी।

बूढ़ी दादी मां अपने कमरे में बैठी-बैठी बाई के ना आने से होने वाली सबकी चिढ़चिढ़ाहट सुन रही थीं।
दूसरे दिन सुबह-सुबह डोर बेल बजी। सबको लगा दूधवाला आया होगा…. लेगी उठकर मम्मीजी दूध… अपन सब जैसे-कैसे पड़े रहो।
प्रतिभाजी ने उठकर दरवाजा खोला। देखा तो क्रॅचेस (मेटल से बनी बैसाखी) पहने बाई खड़ी थी। बोली- मॅडम ! थोड़ा चलना आया, तो मुझे आपका घर पहले दिखा। आपके घर से आज तक मिले सहयोग (हर तरह से) को याद रखते हुए मैंने यह हिम्मत जुटायी है। मम्मीजी कई घरों मे मैंने काम किया है। हमें भी इन्सान की परख है मॅडम। मैं धीरे-धीरे सब काम कर लूँगी, चिंता मत करो। प्रतिभा केवल मुस्कुरा दी।
घर का माहौल एकदम बदल गया। बाई आ गयी- बाई आ गयी। चलो, अच्छा हुआ। मेरे प्रेस करने के कपड़े ढेर सारे पड़े है। बाई २-३ ड्रेस धीरे-धीरे प्रेस कर देना। हाँ, साब करती हूँ पहिले- बाई बोली! धीरे-धीरे सब करते हुए बाई रसोईघर में पहुँची।

बैसाखी दूर रख के आटा मलने के लिये खड़ी थी कि पलंग पर लेटी दादीमाँ धीरे से उठी। व्हीलचेअर पर बैठकर रसोई घर की तरफ मुड़ी।धीरे-से सीढ़ीनुमा स्टूल बाई की तरफ खसकाकर ले आयी। कहने लगीं- बाई, इस पर बैठो आराम से। फिर रोटियाँ बनाने का प्रयत्न करो.. हल्दीवाला दूध रखा है, उसे पी लेना जाते समय। सुना न…..
घायल की गति घायल ही जाने !!

संकलन (लंदन से प्रेषित हैं)

परिचय :- माधवी तारे
वर्तमान निवास : लन्दन
मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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