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कदम बढ़ा कर देखो

विजय वर्धन
भागलपुर (बिहार)

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होगा काम नहीं क्यों तुमसे
कदम बढ़ा कर देखो
साहस को अपनाओ प्यारे
सोच बदल कर देखो
प्रभु राम गर वन ना जाते
कैसे रावण मरता
कृष्ण अगर ना बल दिखलाते
कंस कहो क्या डरता
गांधी जी गर घर में रहते
देश स्वतंत्र न होता
पराधीनता की जंजीरें
अब तक जकड़ा रहता
दशरथ मांझी चेनी लेकर
अगर न पथ को बनाते
गाँव के लोग कहो कैसे
सुविधा का लुत्फ़ उठाते
इसीलिए कहता हूँ सबसे
भाव बदल कर देखो
होगा कोई काम नहीं क्यों
सोच बदल कर देखो

परिचय :-  विजय वर्धन
पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद
माता जी : स्व. सरोजिनी देवी
निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार)
शिक्षा : एम.एससी.बी.एड.
सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त
प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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