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हम अपना मुकद्दर जो आजमाने लगे

शाहरुख मोईन
अररिया बिहार
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हम अपना मुकद्दर जो आजमाने लगे,
मेरे अजीज हाथों में खंजर उठाने लगे।

हवाओं में फैला है जो नफरती ज़हर,
जलता देख घर मेरा वो जो मुस्कुराने लगे।

खौफ के साए में हर लम्हा है कैद अब,
बहसी लोग ख़ुद को जो ख़ुदा बताने लगे।

मजबूर, लाचार, ग़रीबों की है किस्मत,
त्योंहारों में भी वो जो आंसू बहाने लगे।

कुछ बंदिशे हो हवावाजों की जुबां पे,
वो पागल ख़ुद को जो ख़ुदा बताने लगे।

मयस्सर हो तमाम खुशियां गमखारो को,
कुछ बेईमान अब ख़ुद को जो रहनुमा बताने लगे।

परिचय :- शाहरुख मोईन
निवासी : अररिया बिहार
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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