Thursday, November 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

सवाल का उत्तर

सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश)
********************

पापा मुझे भी तो बताओ
तनिक सोच समझकर समझाओ
क्या मैं जन्म से ही पराई हूँ?
आपकी बेटी हूँ, माँ की जाई हूँ
भैया की बहन भी हूँ
दादा-दादी की आँँखों का तारा हूँ।

मेरे जन्म पर तो आप बहुत खुश थे
खूब उछल रहे थे,
पाला पोसा बड़ा किया,
कभी आंख में आँँसू न आने दिया
हर ख्वाहिश को मान दिया।

अब में बड़ी हो गई हूँ
दादी कहती है ब्याहने
योग्य हो गयी हूँ
क्या इसीलिए अभी से
पराई हो गयी हूँ।
भैया भी तो भाभी को
ब्याहकर लाये हैं,
भाभी दूसरे घर से आई है,
फिर भी घर वाली हो गई
यह कैसा रिवाज है समाज का
जहाँ जन्मी, खेली कूदी बड़ी हुई
उसी आँगन में पराई हो रही हूँ।

माना कि भैया ब्याहकर
कही गया नहीं
बस इतने भर से
कौन सा पहाड़
आखिर फट गया।
भैय्या जैसा मेरा भी तो
आप सबसे रिश्ता है,
मेरा हक भैय्या से क्यूँ कम है?

भैय्या से वंश चलेगा
लेकिन वंश चलाने में भी आखिर
किसी बेटी का ही तो दखल होगा।
वह आपके बुढ़ापे का सहारा बनेगा
तो क्या मैं इस लायक नहीं,
कभी ऐसा सोचा क्यों नहीं?

बेटा बेटा दिनभर कहते हो
बस बेटा आपका अंतिम संस्कार कर
पितृऋण चुकायेगा यही सोचते हो,
बेटी भी पितृऋण चुका सके
ये बात क्यों नहीं सोचते हैं?

बेटे में कौन से सुर्खाब के
भला पर लगे होते हैं?
बेटे भी तो बेटियों की तरह
किसी बेटी के ही कोख से जन्म लेते हैं
क्या बेटे बिना प्रसव पीड़ा के
भला जन्म ले लेते हैं?

पापा मेरा सवाल सिर्फ़ आप से नहीं
हर पिता और समाज से है
बेटियों के बिना आपका ही नहीं
समाज का अस्तित्व क्या है?

सोचिये, विचारिये समाज से पूछिए
फिर उत्तर दीजिए
आखिर मेरे सवाल का उत्तर क्या है?

परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
संप्रति : निजी कार्य
विशेष : अधीक्षक (दैनिक कार्यक्रम) साहित्य संगम संस्थान असम इकाई।
रा.उपाध्यक्ष : साहित्यिक आस्था मंच्, रा.मीडिया प्रभारी-हिंददेश परिवार
सलाहकार : हिंंददेश पत्रिका (पा.)
संयोजक : हिंददेश परिवार(एनजीओ) -हिंददेश लाइव -हिंददेश रक्तमंडली
संरक्षक : लफ्जों का कमाल (व्हाट्सएप पटल)
निवास : गोण्डा (उ.प्र.)
साहित्यिक गतिविधियाँ : १९८५ से विभिन्न विधाओं की रचनाएं कहानियां, लघुकथाएं, हाइकू, कविताएं, लेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि १५० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक कहानी, कविता, लघुकथा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन, कुछेक प्रकाश्य। अनेक पत्र पत्रिकाओं, काव्य संकलनों, ई-बुक काव्य संकलनों व पत्र पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल्स, ब्लॉगस, बेवसाइटस में रचनाओं का प्रकाशन जारी।अब तक ७५० से अधिक रचनाओं का प्रकाशन, सतत जारी। अनेक पटलों पर काव्य पाठ अनवरत जारी।
सम्मान : विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा ४५० से अधिक सम्मान पत्र। विभिन्न पटलों की काव्य गोष्ठियों में अध्यक्षता करने का अवसर भी मिला। साहित्य संगम संस्थान द्वारा ‘संगम शिरोमणि’सम्मान, जैन (संभाव्य) विश्वविद्यालय बेंगलुरु द्वारा बेवनार हेतु सम्मान पत्र।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *