नितिन राघव
बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)
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जनसंख्या नियंत्रण करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। इसे नियंत्रित करने के लिए हमारी सरकार और अनेक सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं लगातार प्रयास कर रही है। इनके प्रयासों का परिणाम समाज में देखा भी जा सकता है। लेकिन जनसंख्या नियंत्रण को ज्यादा प्राथमिकता शिक्षित वर्ग ने दी है। इससे भी अधिक प्राथमिकता भारत की उच्च जातियों ने दी है। शिक्षित वर्ग और उच्च जातियों ने अपने परिवार को एक दम से सीमित कर दिया है। प्रायः देखा जाए तो उच्च जातियों में आजकल दो सन्तान पैदा करने का प्रचलन चल रहा है जिससे एक लडका और एक लड़की। अधिकतर परिवार तो प्रथम लडका होने पर दूसरी संतान के बारे में सोचते ही नहीं है।
जनसंख्या नियंत्रण के हिसाब से ये सब उत्तम है परन्तु कभी सोचा है इसका इन परिवारों पर असर क्या होगा? इसके दो असर होंगे। प्रथम अनुकूल असर जनसंख्या नियंत्रण में सहायक होगा।दूसरा प्रतिकूल असर जो इन परिवारों के नष्ट होने का कारण होगा।सवाल ये उठता है कि एक लडका और एक लड़की पैदा करने से परिवार कैसे नष्ट हो सकतें हैं? तो इसे ऐसे समझा जा सकता है कि हमारे समाज में लड़के को वंश आगे बढ़ाने का कारक माना जाता है। लड़कियां भी वंश आगे बढ़ाती है परन्तु वो समाज में उस वंश के नाम से जाना जाता है जिस वंश में लड़की का विवाह होता है। यदि किसी परिवार में प्रथम में लड़का पैदा हो जाए तो आज कल के हिसाब से वो परिवार एक संतान को और आने देता है। यदि दूसरी संतान लडकी हो तो उस परिवार में एक लडका और एक लड़की हो जातें हैं। कुछ परिवार तो ऐसे हैं यदि प्रथम लडका हो तो दूसरी संतान को मौका ही नहीं देते हैं। उच्च वर्गीय जातियों और शिक्षित वर्ग में ऐसा बहुत देखने को मिल रहा है। सोचने वाली बात यह है कि जिस परिवार में एक लडका रूपी संतान है और वो किसी कारण से विवाह से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो जाए, विवाह तो हो किसी कारण वश संतान ना हो तो उस परिवार का विकास वही रुक जाता है। मानो किसी पिता के चार लडके है। उन चारों का विवाह भी होता है। जिनमें से दो के एक लड़की और एक लडका है और एक के केवल एक लडका है तथा चौथे के कोई संतान ही नहीं है। चौथे के परिवार का विकास तो वहीं रूक जाता है। तीसरे लड़के के जो लडका है उसकी विवाह से पहले किसी कारण वश मृत्यु हो जाती है तो तीसरे लड़के के परिवार का विकास भी वही रूप जाता है। चार लडको में से प्रथम पीढ़ी मे ही दो का परिवार खत्म हो गया। शेष बचे दो जिनके दो दो संतानें हैं यदि उनकी भविष्य की पीढ़ियों में ऐसा होता तो हम देखेंगे कि कुछ पीढ़ियों बाद इस परिवार की सारी शाखाएं कट जाएगी या चार में से एक ही शाखाएं शेष बचेगी।
इस प्रकार उच्च वर्गीय जातियां एक दिन विलुप्त होने की कगार पर आ सकती है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार आज अनेक जानवरों, पक्षियों और पौधों की जातियां विलुप्त हो चुकी है या विलुप्त होने की कगार पर खड़ी हुई है। यहां उद्देश्य ये नहीं है कि जनसंख्या वृद्धि न रोकी जाए। इसे रोकने के लिए हमें कदम उठाने चाहिए परन्तु इसका असर क्या होगा ये भी ध्यान मैं रखना जरूरी है। अधिकतर देखा जाता है कि पहले किसी भी जन्तु तथा पादप की प्रजाति को ख़तरे में जाने दिया जाता है। उसके लिए पहले से ही कोई कार्यशील योजना नहीं बनाई जाती परन्तु जब वो प्रजाति संकटग्रस्त हो जाती है तो हमारे सरकारों और वैज्ञानिकों द्वारा उसे बचाने के लिए अनेक योजनाएं और कार्यक्रम चलाएं जातें हैं। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार शुरुआत में शेरो के शिकार पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया लेकिन जब उनकी प्रजाति संकट में आ गई तब अनेक प्रकार के कार्यक्रम चलाए गए और तब कुछ सुधार देखने को मिला है। इसलिए अभी से ही इस पर विचार किया जाना चाहिए कि भविष्य में कोई मानव जाति या विशेष वर्ग के लोग संकटग्रस्त न हो जाए। जिन्हें बचाने के लिए बाद में प्रयास करना पड़े।
चीन की तरह भारत में भी दो बच्चों वाला कानून लाने कि खबरे तेज हैं। सिधी सी बात है कि ये सब जनसंख्या नियंत्रण के लिए किया जा रहा है। चीन ने ग्रामीण क्षेत्र में एक बच्चा और शहरी क्षेत्र में दो बच्चे का कानून बनाया है जो जनसंख्या नियंत्रण के लिए उत्तम है परन्तु चीन में ही एक रीपोर्ट के अनुसार आने वाले पचास सालों में वहां की आबादी का एक बड़ा हिस्सा वृद्धों का होगा क्योंकि एक या दो बच्चों वाले कानून के कारण नवयुवक तो कम आएंगे परन्तु पूराने नवयुवक बड़ी संख्या में बुढ़े हों जाएंगे जिससे देश की रफ्तार धीमी हो जाएगी क्योंकि किसी भी देश कि रफ्तार उसके नवयुवकों के हाथों में होती है। जब एक या दो बच्चे होंगे तब फिर यही होगा कि सभी बच्चे किसी ना किसी कारण वश संतान उत्पन्न करने तक नहीं पहुंच पाएंगे और उनके परिवार समाप्त हो जाएंगे।
हमारे देश में कुछ कारण है जिसकी वजह से शिक्षित वर्ग एक या दो संतान तक ही सीमित है जैसे प्रथम शिक्षा, क्योंकि शिक्षित वर्ग जानता है कि बड़े परिवार को चलाने में क्या समस्या आती है और छोटा परिवार सुखी परिवार होता है तथा दूसरा कारण है महंगाई जिसके कारण बच्चों का लालन-पालन करना कठिन हो चला है। तीसरा कारण है अपने बच्चों की शिक्षा क्योंकि आज कल सब मां बाप अपने बच्चों को अच्छे से अच्छे विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में पढ़ाना चाहते हैं ताकि उनकी संतान कामयाब हो जाए परन्तु आज विद्यालय से लेकर महाविद्यालय और महाविद्यालय से विश्वविद्यालय तक शिक्षा की कीमत इतनी ऊपर जा चुकी हैं कि आज का आम आदमी एक बच्चे को भी पढ़ाने में असमर्थ हैं। प्रायः देखा गया है कि कुछ लोग अपनी जमीन बेचकर, कुछ अपना सोना गिरवी रखकर और कुछ तो साहुकारों से मोटी ब्याज पर कर्ज लेकर बच्चों को पढा रहे हैं।
जन्म तिथि : ०१/०४/२००१
जन्म स्थान : गाँव-सलगवां, जिला- बुलन्दशहर
पिता : श्री कैलाश राघव
माता : श्रीमती मीना देवी
शिक्षा : बी एस सी (बायो), आई०पी०पीजी० कॉलेज बुलन्दशहर, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से, कम्प्यूटर ओपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट डिप्लोमा, सागर ट्रेनिंग इन्स्टिट्यूट बुलन्दशहर से
कार्य : अध्यापन और साहित्य लेखन
पता : गाँव- सलगवां, तहसील- अनूपशहर जिला- बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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