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नेहानुबन्ध

दिनेश कुमार किनकर
पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)
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प्रेम की लंबी उम्र बहुधा उसकी निस्वार्थता पर निर्भर करती हैं। मधु जब अपने बाबुल का अंगना छोड़ पी की देहरी आई तो मन मे एक दृढ़ संकल्प तो था पर एक अनजान सा भय मिश्रित आनंद भी था। बचपन से सौतली माँ के कठोर सानिध्य में पली मधु ने कष्टो व दुखो को बहुत नजदीक से देखा था। बात बात पर पिटना, भूखे ही सो जाना आदि की तो मधु को खूब आदत थी। पर कितनी भी कठोर क्यों न हो, मधु अपनी मां को हृदय से चाहती थी।
ससुराल में तो धन दौलत वैभव सब कुछ मधु को मिल गया था। पर मधु माँ को नही भूल पाई थी। ससुराल में सिर्फ उसके ससुर और पति बस दो ही लोग थे। विवाह के लगभग एक साल बाद मधु के पिताजी यकायक चल बसे। घर का सारा काम मधु से करवाने वाली मां पर मानो वज्रपात पड गया। दुकान बंद हो गई और कुछ ही दिनों में खाने के लाले पड़ने लगे। मां को रह-रह कर अपनी सौतेली ही सही अपनी बेटी की याद आने लगी। कभी बेटी को एक रोटी के लिए तरसा देने वाली मां को अब खुद रोटियों के लाले पड़ने लगे।
असमय वैधव्य की वेदना व निर्धनताजनित क्षुधा दोनों ने मानो रूप व गर्व का हरण कर लिया था। कुछ काल तक सहकर अंततः माँ ने मधु को एक दिन फोन लगाकर अपने अंतस की वेदना का बखान किया और खूब रोई।
इधर मधु की आंखों भी अविरल बह रही थी। किंतु वह कुछ ना बोली। उसके भीतर एक अंतर्द्वंद्व सा चल रहा था। उसे माँ द्वारा दिये गए सारे दुख याद आ रहे थे। पर अंततः उसकी प्रकृतिप्रदत्त ममतामई विचारधारा की जीत हुई। एक दृढ़ निश्चय के साथ उसने सब कुछ सुनकर बिना कुछ कहे फोन रख दिया।
उधर माँ ने देखा कि मधु ने बिना कुछ कहे फोन रख दिया तो वह अत्यंत दुखी होकर अपने किये पर पछताते हुए रात भर रोती रही। रोते-रोते उन्हें कब नींद लग गई पता ही नही चला। सुबह किसी के दरवाजा खटखटाने की आवाज से माँ की नींद खुली। मां ने दरवाजा खोला….देखा मधु खड़ी थी। माँ को देखते ही मधु ने उन्हें गले लगा लिया। मधु ने कहा की चलो माँ हम साथ साथ रहेंगे। मैं तुम्हे लेने आई हूं।
एक दूसरे के बाहु वलयो में बंधे दो शरीर, एक जान होकर अपनी भावनाओं को प्रेमाश्रुओं से बांट रहे थे।

परिचय –  दिनेश कुमार किनकर
निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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