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गुदड़ी का लाल

डॉ. कुसुम डोगरा
पठानकोट (पंजाब)

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तुम कह कर आना
तुम कहीं ओर नहीं
मेरे पास आ रहे हो
सफर अपने का
विराम पाने आ रहे हो
कुछ पल दुनियादारी
को भूल जाने
मन की कैद से निकल
तन्मयता से वात्सल्य का
आनंद पाने आ रहे हो
संवेदननाओ को
महसूस करती
शुन्य की अवस्था से दूर
ममता की ओर एक
कदम बढ़ाने आ रहे हो
तुम कह कर आना
तुम कहीं और नहीं
मेरे पास आ रहे हो
घर के झमेलों से निकल
बही खातों के हिसाब से दूर
अपनी गुदढी से
रूबरू होने आ रहे हो
खातिरदारी से दूर
परिचित अंदाज में
स्वयं को महसूस होने
के लिए आ रहे हो
तुम कह कर आना
तुम कहीं ओर नहीं
मेरे पास आ रहे हो…।

परिचय :- डॉ. कुसुम डोगरा
निवासी : पठानकोट (पंजाब)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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