जनक कुमारी सिंह बाघेल
शहडोल (मध्य प्रदेश)
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बेटी तुम सो रही क्या?
एक हट्टा-कट्टा कद्दावर पुरुष श्वेत वस्त्रधारी, लम्बी श्वेत कपसीली दाढ़ी और सिर में बड़े-बड़े सफेद बाल, निर्मल छवि देख विनीता अचकचाकर उठ बैठी। उस महापुरुष के मुखमंडल पर ऋषि-मुनियों की तरह आभा झलक रही थी। विनीता चरण स्पर्ष करते हुए बोली-बाबा आप यहां ! बाहर कोई नही है क्या? बाबा जी आप यहां आने का कष्ट क्यों किये। मै वहीं आ जाती।
नही बेटी-मुझे तुमसे ही मिलना था इसलिए मैं उधर गया ही नही। सीधे यहीं चला आया।
अच्छा ! कहिए ! मैं आपकी क्या सेवा कर सकती हूँ।
बेटी ! मैं बस यही कहने आया हूँ कि अब पितृ पक्ष आ गया है। लोग श्राद्ध के बहाने अनेकों तरह के दिखावे और भुलावे में आ जाते हैं। कम से कम पांच-सात पंडितों को आमंत्रित करेंगे। घर परिवार या दोस्तों को बुलाएंगे। एक वृहद भोज का आयोजन होगा। ऐसा लगेगा जैसे कोई जलसा हो रहा हो। कहते हुए बाबा जी के मन की व्यथा साफ झलक रही थी।विनीता अभी नई नवेली दुलहन है। उसके समझ में कुछ भी नही आ रहा कि बाबा जी कहना क्या चाह रहे? वह आँखे फाड़े एक टक भौचक सी बाबा जी की तरफ देखे जा रही थी। धीरे से उसने कहा-बाबा जी आपकी बातें और आपका उद्देश्य दोनो ही मेंरे समझ में नही आ रहा।
बाबा जी ने कहा-बेटी ! तू आगामी पीढ़ी है। इस घर की बड़ी है आगे से तुझे ही यह सब कृत्य करने होंगे। इसीलिए मैं तेरे पास आया हूँ। तुझे समझाना चाह रहा हूँ कि तुम किसी भी तरह के आडम्बर में नही फसना। लोकाचार, नियम, कानून बता कर लोग अनेकों तरह से प्रभावित करना चाहते हैं और अंधविश्वास के गर्त में धकेलना चाहते हैं। इसीलिए मैं तुम्हे पहले ही आगाह करने आया हूँ कि तुम इन आडम्बरों का शिकार मत होना। अपनी सामर्थ्य, समझ और विवेक से हमेंशा काम लेना।
“पर बाबा जी आप मुझसे क्यों कह रहे हैं? ये बात तो आप घर के बड़े-बुजुर्गों को भी बता सकते हैं।”
“यही तो विडम्बना है बेटी ! बाबा जी कराहते हुए बोले- जिन्हे तुम बड़े-बुजुर्ग कह रही हो वो अंधविश्वास के जाल में, सामाजिक प्रभाव और दिखावे के प्रेम में बुरी तरह फंस चुके हैं। उन्हे समझाने का कोई औचित्य नही है। उन्हें यह भी नही पता है कि पितृदेव सिर्फ आपकी श्रद्धा के भूखे हैं। परिवार के साथ आप उन्हें याद कर लेते हो और श्राद्ध पक्ष में उनका तर्पण तथा किसी भी गरीब को जो वास्तव में जरूरत मंद हो उसे भर पेट भोजन करा देने मात्र से ही पितर तृप्त हो जाते हैं।”
“विनीता जो अभी तक बाबा जी की बातें सुन रही थी उसने पूछा- बाबा जी आप कौन हैं?
बाबा जी उसके सिर पर हाँथ फेरते हुए बोले-मैं पितृदेव हूँ।
परिचय : जनक कुमारी सिंह बाघेल
पति : श्री गोपाल सिंह बधेल
पिता : श्री अयोध्या सिंह गहरवार
माता : श्री मती नैनवास कुमारी सिंह गहरवार
जन्म तिथि : १२ /०१/१९६०
जन्मस्थान : मऊगंज (रीवा म. प्र.)
निवासी : पाली रोड शहडोल (मध्य प्रदेश)
संतति : श्रीमती सोनल सिंह चंदेल, श्री मती श्रुति सिंह तोमर
शिक्षा : बी.ए.एल.एल.बी., एम. ए. हिंदी, बी.ई.डी., संगीत गायन में डिप्लोमा।
व्यवसाय : व्याख्यता हिंदी, अध्यापन कार्य–संस्कृत (सरस्वती शिशुमंदिर उ. मा. वि. भोपाल (म. प्र)
प्रकाशित कृतियां : सरल–सरस गीता (श्री मद् भगवत गीता १८ अध्याय संलग्न गीता रस), पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित विविध रचनाएं : कविता, कहानी, दोहा, लघु कथा, संस्मरण आलेख यात्रा वृत्तान्त इत्यादि।
प्रकाशाधीन रचनाएं : १- दो काव्य संकलन, २- कहानी संकलन ३- दोहा संकलन ४- महाभारत एक कथा (अपूर्ण) पद्य
साहित्य के क्षेत्र में प्राप्त उपलब्धियां :
१ निवंध लेखन प्रतियोगिता लेखिका संघ भोपाल में प्रथम एवं द्वतीय पुरत्कार एवं प्रमाण प्राप्त। संस्मरण लेखन प्रतियोगिता लेखिका संघ भोपाल द्वार तृतीय स्थान प्राप्त।
२ लेखिका संघ भोपाल द्वारा दोहा लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरष्कार प्राप्त।
३ हिन्दी / बघेली दोहा संसार में प्रतिदिन दोहा लेखन प्रतियोगिता में तृतीय श्रेणी श्री सम्मान प्राप्त।
४ संचालक के रूप में लेखिका संघ म. प्र. भोपाल द्वारा सम्मानित।
५ साहित्यिक मित्र मंडल में साप्ताहिक कहानी लेखन प्रतियोगिता में दो बार उत्तम लेखन सम्मान।
६ विभिन्न प्रतियोगिताएं कराने के लिए लेखिका संघ भोपाल द्वारा प्रसस्ति पत्र प्रदान किया गया।
७ आरिणी एफ बी समूह द्वारा लघुकथा वाचन एवं का काव्य पाठ के लिए प्रमाण पत्र प्रदान किया गया।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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