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बहुरंगी दुनिया

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
इन्दौर (मध्य प्रदेश) 

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दुरंगी मत कहो इसको, बहुत रंगीन दुनिया है।
कहीं गमहीन दुनिया तो, कहीं गमगीन दुनिया है।।
कहीं नमकीन है कुछ कुछ, कहीं शौकीन है दुनिया,
कहीं शालीन भारी तो, कहीं संगीन दुनिया है।।

कहीं बस बात चलती है, कहीं पर मन्त्र चलते हैं।
कहीं पर हाथ चलते तो, कहीं पर यन्त्र चलते हैं।।
कहीं पर सादगी अपनी, विरासत छोड़ जाती तो,
कहीं पर सादगी से भी, विकट षडयन्त्र चलते हैं।।

किसी का मन बतासा है, किसी का तन तमाशा है।
किसी के पास धन ही धन, मगर सुख से निराशा है।।
खुलासा हो चुका है यह, उदासी दास किसकी है,
करीने से जिया है जो, जिसे सुख ने तराशा है।।

किसी ने गाय पाली है, किसी ने भैंस पा ली है।
किसी ने झोलियाँ भर लीं, किसी की जेब खाली है।।
किसी की चाह ज्यादा है, किसी को आज भी आशा,
किसी की दाल में काला, किसी की दाल काली है।।

परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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