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जो मुझे भा गई

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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दो वर्ष पश्चात घर जा रहा हूँ। टेक्सी में बैठे-बैठे पत्रिका के पन्ने पलटने लगा। सौंदर्य प्रतियोगिता पर नज़र पड़ते ही मुझे बहन के ब्याह का नज़ारा याद आ गया।
बहन की वह परी सी सहेली मानो आकाश से उतर कर आई हो। सितारों जड़ी झक श्वेत साड़ी व लम्बे लहराते बालों में बिखरी मोगरे की लड़िया। नाम मात्र के गहने कह रहे थे… मोहताज नहीं जेवर का जिसे खूबी ख़ुदा ने दी।
उसका पूरी जिम्मेदारी से माँ का हाथ बटाना मैं आज तक नहीं भुला नहीं पाया।
इसी बीच माँ पापा ने कई रिश्ते सुझाए। बहन से उस सुंदरी के बारे में कई बार पूछा। विदेश में रह रही बहन उसका पता नहीं लगा पाई।
चाय की तलब लगने पर टेक्सी रुकवाई। रेस्तरां में लगा कि मोगरे की खुशबू फैल रही है। सामने टेबल पर श्वेत पौशाक में पीठ किए बैठी एक युवती बैठी है। हाँ, बस लम्बी चोटी ही लहराती दिखी।
ज्यों ही वह पलटी मैं चौका, “तुम यहाँ अकेली, पहचाना मुझे? मैं तुम्हारी सहेली का भाई। याद है तुम उसकी शादी में आई थी।”
उसके सूने माथे व उदास चेहरे ने हक़ीक़त बयाँ कर दी। उत्तर में उसकी झील सी गहरी आँखों से अश्रुमोती ढलकने लगे।
पता चला उसके पति दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए हैं। वह अपने माँ पापा को पहले ही खो चुकी है। देखने से लग रहा था वह पति का अंश सहेजे हुए है।
मैं बमुश्किल मनुहार करके अपने साथ घर ले आया हूँ। उसे मन ही मन में चाँदनी नाम देकर मैं प्रार्थना करने लगा, “हे ईश्वर! मुझे इतनी शक्ति देना कि मैं इसके लहराते बालों में फ़िर से मोगरे की कलियाँ बिखेरदूँ।”

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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