Thursday, November 7राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

बटवारा

ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश)

********************

घर भर में कोहराम मचा था, तारा जी सीढ़ी से गिर गई थी, सिर पर भारी चोट लगी थी, डाक्टर ने बताया कि शायद दिमाग की कोई नस फट गई थी, जो उन्हें यूं अचानक दुनिया को छोड़ अलविदा कहना पड़ा। यूं तो तारा जी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो चुकी थी, तीन बेटे थे, सभी की शादी हो चुकी थी और सभी अपने अपने परिवार में मस्त थे।

लेकिन तारा जी का यूं अचानक जाना उनके पति राधेश्याम जी पर पहाड़ टूटने जैसा था, क्योंकि राधेश्याम जी थोड़े से अस्वस्थ रहते थे, और उन्हें हर पल तारा जी के साथ की जरूरत महसूस होती थी, असल में यही वह उम्र होती है, जिसमें हमें अपने जीवनसाथी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, और जीवन साथी की जैसे आदत सी हो जाती है, इसी समय पर आकर हम जीवनसाथी का सही मायनों में अर्थ समझ पाते हैं, और फिर पूरी ज़िंदगी तो जिम्मेदारियों में निकलती ही है, ठहर कर जिंदगी जीने का आनंद तो अभी शुरु हो पाता है। अभी आकर हम एक-दूसरे के सुख-दुख में भागी होते हैं। पर ईश्वर के आगे क्या किसी की चली है ….?

राधेश्याम जी के दिमाग में हजारों सवाल चल रहे है कि अब उनकी जिंदगी किस प्रकार कटेगी, कौन उनके सुख दुख में उनके साथ होगा क्योंकि तीनों ही बेटे शहर से बाहर रहते हैं। तारा जी की तेरहवीं के बाद उनका सारा सामान बांटा जा रहा है तारा जी के पास सोने के काम (कढाई) की दो बहुत भारी साड़ियां है, जिनका मूल्य आज बहुत अधिक होगा, और शायद आज तो ऐसा काम साड़ीयों पर मिले भी नहीं।

मझली और छोटी बहू झट से कहती हूं कि मां ने ये साड़ी उन्हें देने का वादा किया था, राधेश्याम जी कहते हैं अगर ऐसा है तो तुम रख लो, और थोड़ी ही देर में तारा जी के सारा सामान चीज जेवर, कपड़े आदि का बंटवारा हो जाता है, लेकिन अफसोस किसी ने भी अभी तक इस बारे में जिक्र नहीं किया कि राधेश्याम जी अब किसके साथ रहेंगे और कहां रहेंगे? यह सोचकर राधेश्याम जी की आंखें नम हो जाती हैं, वो पूजा घर की तरफ जाते हैं, तभी उनकी बड़ी बहू सुनिधि आकर उनसे कहती है, पापा एक चीज का देने का वादा तो मां ने मुझसे भी किया था, क्या आप मुझे वो दोगे?
राधेश्याम जी कहते हैं जो कुछ था तुम्हारे सामने है, अब क्या दे सकता हूं? सुनिधि कहती है आपका स्नेह और प्यार पापा। मां ने एक बार कहा था कि उन्हें सबसे ज्यादा फिक्र आपकी है, कहा था यदि उन्हें कुछ होता है तो मैं आपकी सेवा करूं, हां पापा आपका आशीर्वाद आपकी छत्रछाया देने का मां ने मुझसे वादा किया था, तो पापा आप मुझे ये दोगे ना… इतना सुनना था कि राधेश्याम जी कुछ कह तो नहीं पाते पर उन्होंने अपना कपकपाता हुआ आशीर्वाद भरा हाथ अपनी बहू सुनिधि के सर पर रख दिया और सही मायनों में बटवारा अब पूरा हुआ।

परिचय :-  ऋतु गुप्ता
निवासी : खुर्जा बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *