ललिता शर्मा ‘नयास्था’
भीलवाड़ा (राजस्थान)
********************
अपनी पचासवीं लघु कथा पुस्तक के विमोचन की ख़ुशी में मैं प्रकृति की गोद में अपना अकेलापन दूर करने के लिए राजस्थान से कश्मीर गई। सुबह की ठंडी-ठंडी हवाएँ मन को सहला रही थी व तन को रह-रह कर सुकून दे रही थी। हाथ में चाय का कप था। हल्की-हल्की बारिश की बूँदे भी थी जो बरस कर भी दिखाई नहीं दे रही थी। इतना मनोरम दृश्य किसी सूटकेस में भर करके मन सहेजकर रख लेना चाहता था। पलकें अकिंचन भाव से अनिमेष हो चुकी थी मानों पर्वत-शृंखलाएँ चिरनिद्रा में सो रही है बिलकुल शांत। इसी बीच एक कुत्ते के बच्चे की आवाज़ें आई। उसने मेरी मंत्रमुग्ध तंद्रा को भंग कर दिया था इसलिए मैं रौद्र भाव से उसकी ओर गई। मेरे आश्चर्य का ठिकाना तब नहीं रहा जब मैंने उसे एक छोटे से बालक के हाथ में देखा। दोनों में मासूमियत कूट-कूट कर भरी थी उतनी ही उनके चेहरे पर दरिद्रता भी झलक रही थी मानों कईं दिनों से भोजन देखा ही न हो। मैं अपने पूर्व के सभी ख़्याल व चाय भूल चुकी थी। मेरा ध्यान जिज्ञासु हो चुका था कि ये दोनों यहाँ क्यूँ छिप कर बैठे है?
एक गहरी साँस ली व बच्चे से पूछा कौन हो तुम, यहाँ क्या कर रहे हो? बच्चा निःशब्द रहना चाहता था पर शायद मेरे डर से बोल पड़ा कि इस कुत्ते को रोटी खानी है।
मुझे ज़ोर से हँसी आई। मैंने कहा तुम्हें खानी है या इसे?
बच्चा बोला दोनों को।
मैं अंदर गई व खाने की चीज़ें लेकर उन्हें दे दीं। उन्हें वो सब ख़त्म करने में कुछ समय नहीं लगा। वे उठ कर जाने लगे। मैंने कहा तुम कहाँ रहते हो और यहाँ इस हाल में कैसे घूम रहे हो? बारिश में पैर फिसला तो हड्डी-पसली भी नहीं मिलेगी।
उसने कहा मैं नीचे वाली घाटी में रहता हूँ इसके साथ। मेरी माँ बचपन में ही चल बसी थी व बाबू जी सैनिकों की छावनी में सफ़ाई का काम करते थे। आतंकवादियों ने उन्हें सेना का ख़बरी समझ कर मार दिया। तब से मैं और ये (कुत्ते का बच्चा) यहीं रहते हैं। कुछ दिनों से आतंकवादी फिर से घूम रहे हैं इसलिए हम दोनों इधर-उधर छिप रहे हैं।
मैं उसकी बात सुन कर स्तब्ध हो गई कि इतना छोटा-सा बच्चा इतना सब हो जाने के बाद भी वादियों में डटा हुआ है। अपनी बात पूरी कर वो जाने लगा, मैंने उसे रोका व मेरे साथ राजस्थान चलने को कहा। उसने संकोच भरे भाव से कहा काम क्या करना होगा? मैं कारतूस बंदूके नहीं बेचूँगा। मैंने फिर चौंकते हुए उससे पूछा ! ऐसा क्यूँ कहा तुमने? उसने कहा यहाँ आतंकवादी तभी ज़िंदा रखते हैं जब आप उनके लिए ऐसे काम करते हो पर मैं मेरे पिताजी की तरह बनाना चाहता हूँ सफ़ाई वाला। मुझे फिर ज़ोर से हँसी आई। मैंने कहा अरे कोई सफ़ाई वाला भी बनना चाहता है क्या!
बच्चे ने कहा सेना में सभी मेरे बाबू जी को बहुत सम्मान देते थे इसलिए मैं भी सम्मान का काम करना चाहता हूँ।
मैं उसके पास गई व उससे कहा मैं तुम्हें गोद लेकर पढ़ाऊँगी व एक अच्छा इंसान बनाऊँगी और तुम्हारा ये कुत्ता भी साथ ही रहेगा। क्या तुम मेरे साथ चलने के लिए तैयार हो?
उस दरिद्र से चेहरे की अनमोल हँसी मानों उन हसीन वादियों से भी ख़ूबसूरत लग रही थी।
जिस सुक़ून की तलाश में मैं थी उस बच्चे से मिलकर मुझे लगा कि वो अब आ गया है मेरी ज़िंदगी में।
परिचय :- ललिता शर्मा ‘नयास्था’
निवासी : भीलवाड़ा (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻
आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 hindi rakshak manch 👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.