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अधिकार

राकेश कुमार तगाला
पानीपत (हरियाणा)
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गीता का रो-रो कर बुरा हाल था।पति को खो देने की पीड़ा ने उसे तोड़ कर रख दिया था। अभी शादी को कुछ ही साल हुए थे। दो छोटे-छोटे फूल से बच्चे थे। जो रोज पापा का इंतजार कर रहे थे। मम्मी, पापा कब आएंगे? उनके मासूम सवालों के जवाब उसके पास नहीं थे। देखते ही देखते साल गुजर गया था। पर उसकी आँखों के आँसू सूख नहीं रहे थे। वह बुरी तरह से टूट गई थी। उसे अपने बच्चों का भविष्य अन्धकार में लग रहा था।
कहने को पति का भरा-पूरा परिवार था। जेठ, देवर सभी थे। पर भाई के मरने के बाद, उसे कोई भी सहारा देने को तैयार नहीं था। उन्हें उसकी चिंता नहीं थी। पूरा परिवार ज़ायदाद के पीछे था। उन्होंने उसका हिस्सा भी हड़प लिया था। उस पर चरित्रहीनता का आरोप लगा कर, उसे घर से बाहर कर दिया था। वह अपनी माँ के घर पर ही निराशा में दिन तोड़ रही थी।
माँ भी अपनी बढ़ती उम्र से परेशान थी। वह किसी भी तरह अपनी बेटी का घर दोबारा बसाना चाहती थी।
जब भी माँ, गीता से दोबारा घर बसाने की बात करती तो वह मना कर देती। माँ उसे तरह-तरह के तर्क देकर समझती, बेटी अभी तुम्हारी उम्र ही क्या, बच्चो के भविष्य के बारे में सोच।
वह चुपचाप सुन लेती पर कोई जवाब नहीं देती। माँ ने दुनिया देखी थी। वह उसके लिए लगातार रिश्ता तलाश रही थी। आखिर उसे एक रिश्ता मिल ही गया। राजन दो बच्चों का पिता था। वह सहज ही इस शादी के लिए तैयार हो गया था। माँ उसे समझा रही थी। मैं कब तक साथ रहूँगी तुम्हारे? भगवान तुम्हें दूसरा अवसर दे रहे। मान जाओ बेटी, अपने लिए ना सही अपने बच्चो के लिए। नहीं माँ मुझें दोबारा घर बसाने का कोई अधिकार नहीं है।
क्यों, बेटी। तुम्हें पूरा अधिकार है घर बसाने का। जीवन में कितने ही बुरे हादसे हो जाए, जीवन नहीं रुकता। आगे बढ़ने का अधिकार सभी को होता है। वह माँ के तर्कों के आगे नतमस्तक हो गई। वह भगवान को धन्यवाद दे रही थी। इस नई राह के लिए।

परिचय : राकेश तगाला
निवासी : पानीपत (हरियाणा)
शिक्षा : बी ए ऑनर्स, एम ए (हिंदी, इतिहास)
साहित्यक उपलब्धि : कविता, लघुकथा, लेख, कहानी, क्षणिकाएँ, २०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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