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पिता

डॉ. कुसुम डोगरा
पठानकोट (पंजाब)

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एक पुरुष के दो बच्चे थे। वह पुरुष रोजाना अपने बच्चों के उठने से पहले काम पर चला जाता और शाम को बच्चों के सो जाने के बाद घर आता। बच्चों की मां उन बच्चों के पूरा दिन काम करती। उनके लिए खाना बनाती, स्कूल भेजती, उनके वस्त्र बदलवाती और उनको पढ़ाई करवा कर उन्हे सुला देती। बच्चों ने कभी अपने पिता को नहीं देखा था। बच्चों का बचपन बीता। बच्चे बढे होने लगे। एक दिन बच्चों ने अपनी मां से कहा कि मां हम दोनो ने आपको अपने साथ काम करते, समय बिताते देखा है। पिता जी को कभी भी नही देखा। ऐसे में तो उनके बिना भी हम बड़े हो सकते हैं। उनका हमारे जीवन में क्या कोई काम है? मां को उस दिन आश्चर्य हुआ और एहसास हुआ कि बच्चे तो अनजान है पिता के उनके जीवन में योगदान के। मां ने बच्चों को अपने पास बिठाया और समझाने लगी। कि तुम्हारे पिता अपना पूरा समय तुम्हारा जीवन और भविष्य बनाने के लिए मेहनत करते हैं। उन्होंने तुम्हारे बचपन की क्रीडाओं का, तुम्हारे बड़े होते हुए की खुशी का आनंद भी नही लिया। मैं तुम्हे बड़ा करते समय साथ-साथ जो आनंद ले रही हूं। तुम्हारी बातें सुन कर, तुम्हारे साथ काम करते हुए अपनी पूरी थकावट उतार लेती हूं। ये सब तुम्हारे पापा के हिस्से नहीं आता। वो चाह कर भी तुम्हारे साथ समय नही बीता सकते हैं। तो अब बताओ है ना तुम्हारे पापा तुम्हारे हीरो। जो तुम्हे बिना देखे, बिना मिले, बिना तुम्हारे साथ खेले भी तुम्हारी जीवन रूपी नैया के खवेईया बन कर जो बलिदान का जीवन बिता रहे हैं। वो भगवान से कम तो नहीं हैं ना बच्चो।…

परिचय :- डॉ. कुसुम डोगरा
निवासी : पठानकोट (पंजाब)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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