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सर्दी की सरकार

आशीष कुमार मीणा
जोधपुर (राजस्थान)
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ओढ़कर आँचल रहो
अब सर्दी की सरकार है।

जिसकी चलती थी हुकूमत
हौसले अब पस्त हैं।
देर से आता है सूरज
जल्दी होता अस्त है।
छुपता, छुपाता खुद को
जैसे गुनाहगार है।
ओढ़कर ….

बेवजह चिढ़ती थी
जो दुपहरी उन दिनों
सूखते थे पेड़, पौधे
होठों पर बस प्यास थी
हर तरफ है हरियाली
बिखरी अब बाहर है।
ओढ़कर….

ओस से भीगे हैं पत्ते
बारिश का अहसास है
फूल,कलियां भीगें हैं जैसे
आया मधुमास है।
कोहरा ठहरा है जैसे
सर्दी ने रखा पहरेदार है
ओढ़कर….

ठिठुरते हाथ लेकर संध्या
रात में समा गई
तारों की बारात लेकर
रात है अब आ गयी
सूनी हों हर गलियाँ, राहें
सबको खबरदार है
ओढ़कर आँचल रहो
अब सर्दी की सरकार है।

परिचय :- आशीष कुमार मीणा
निवासी : जोधपुर (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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