विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
********************
कमाना खाना जीवन तंत्र, हिस्सा भीड़ का पाती है।
माँ अनुकंपा सृजन फुहार, जीवन किस्सा सजाती है।अब तो टीवी चैनल सारे, दिन भर शोर मचाते हैं।
ब्रेकिंग न्यूज़ देख देखकर, रक्त चाप बढ़वाते हैं।तुकांत काव्य अनुराग बहुत, नए ढंग से लाते हैं।
दंगा-पंगा, रथ-पथ गाता, लठैत टिकैत छाते हैं ।गिरी गाज खत्म राज विधान, समाधान तक आती है।
मां अनुकंपा सृजन फुहार, जीवन किस्सा सजाती है।कमाना खाना जीवन तंत्र, हिस्सा भीड़ का पाती है।
पद पाने का लालच हरदम, इस तरह समाया रहता ।टूटी फूटी नाक बचाने, तिकड़म ही लाया करता।
होता जोर नहीं पैरों में, चाल बहुत तिरछी चलते।खिसियाये से नेता बनते, अहम वहम में दम रखते।
नौ मन तेल बिना ही राधा, मोहन के गुण गाती है।मां अनुकंपा सृजन फुहार, जीवन किस्सा सजाती है
कमाना खाना जीवन तंत्र, हिस्सा भीड़ का पाती है।राह चाह सूरत शकल अलग, गढ़ो बढ़ो वाले मोती।
जज़्बा रहे परछाईं जैसा, अकेले सपन संजोती।पर भाग्य कर्म लकीर भिन्न, जलन सहारे जी जाते।
देखा सीखी हावी होती, आडंबर में रह जाते।बारूद हृदय में रखकर, कलंक कथा सुनाती है।
माँ अनुकंपा सृजन फुहार, जीवन किस्सा सजाती है।कमाना खाना जीवन तंत्र, हिस्सा भीड़ का पाती है।
दिनकर सुमन निराला जिनसे, साहित्य प्रेरणा पाता।सुभद्रा जयशंकर बख्शी सरल, पंक्ति पंक्ति दम रखता।
रचनाकारों के रचित लेख, गली गांव शहर की मौज।साहित्य संस्कार लेखन से, फिर आशावान है फौज।
रीति भक्ति के कलमकार की, गाथा नहीं थकाती है।माँ अनुकंपा सृजन फुहार, जीवन किस्सा सजाती है।
कमाना खाना जीवन तंत्र, हिस्सा भीड़ का पाती है।जब पाए समय समझ दोनों, अपनी जंग लड़े हरेक।
अपना उद्योग चलाएं मगर, लेखनी रूप भी अनेक।साहित्य समाज साधना तो, रहता देश का प्राण है।
क्यों व्यवसाय बने साधना, माँ शारदे की आन है।कलम साधकों को युग युग से, वंदन नमन कराती है।
माँ अनुकंपा सृजन फुहार, जीवन किस्सा सजाती है।कमाना खाना जीवन तंत्र, हिस्सा भीड़ का पाती है।
परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़
उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻
आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 hindi rakshak manch 👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें….🙏🏻.