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सर्दी की वो खिलखिलाती धूप

श्रीमती विभा पांडेय
पुणे, (महाराष्ट्र)
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निश्चिंत रहो कि बहुत जल्दी ही
बहती ये सर्द हवाएँ
अपना रुख बदलेंगी।
और सूनी-सूनी ये फिज़ाएँ
फिर रंगों को ओढ़ लेंगी।
क्योंकि
समय सदा एक -सा नहीं रहता,
बदलता ही है।
और समय के गर्द से ढँके आइनों में
बीते पलों का चित्र उभरता ही हैं।
जिनमें कुछ चित्र दुख देते हैं
पर कुछ ऐसे सुकून देते हैं जैसे,
सर्दी में खिलने वाली धूप ।
जिनके आते ही ये सर्द हवाएँ
हो जाती हैं मन के अनुरूप।
तो बस इंतजार करो
उस निहाल करने वाली
सर्दी की धूप का।
जिसकी गरमाई जीवन को
सुख से भर देती है।
और कानों में हौले से कहती है
कि आखिर ये सर्द हवाएँ
कब तक बहेंगी।
विस्मृति के दलदल में एक दिन
ये भी तो ढहेंगी।

परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड.
जन्म : २३ सितम्बर १९६८, वाराणसी
निवासी : पुणे, (महाराष्ट्र)
विशेष : डी.ए.वी. में अध्यापन के साथ साथ साहित्यिक रचनाधर्मिता में संलग्न हैं ।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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