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काश! वो कह देती …

नरपत परिहार ‘विद्रोही’
उसरवास (राजस्थान)
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घर में एक बुढिया…
भरा पूरा परिवार…
उसके खुशियों की बगिया हैं
सब अच्छा हैं….
खाना भी मिल जाता हैं
पीना भी मिल जाता हैं
मगर ….
बहू को ये बुढिया
अच्छी नहीं लगती
क्योंकि बहू के आधे से अधिक
काम वो बुढिया कर लेती हैं
बुढिया को पता है
काम करने वाले बहुत हैं
मगर फिर भी उनका मन….
कहता है…
शायद ! वो सुनना चाहती हैं
अपने बहू के मुँह से
कि माँ जी आप बैठो
ये काम मैं कर दूंगी।
ये समझ कर कोई न कोई
काम हाथ में ले लेती हैं
शनैः शनैः उम्र भी …
जवाब देने लगी हैं
बुढिया बीमार थी
प्यास के मारे ..
कंठ सुखे जा रहा हैं
पर पता है
कोई नहीं कहेगा
कि माँ जी पानी पीना हैं
सो बुढिया स्वयं उठ
अपने पैरो पर….
भरोसा कर पनघट
को चली ही थी
इतने में तो
पैरो ने जवाब दे दिया …
वो धडा़म… से गिर पडी़
शायद वो उनके जीवन का
आखिरी दिन था …
मालिक ने सुन ली
बहुत परेशान हो रही हैं
बेचारी ….
क्यों न उन्हें इस नरक
से छुटकारा दिया जाए
पर फिर
बुढिया की साँसे कही अटक गयी
वो सुनना चाहती थी ….
पर आँखे खुली ही रह गयी
साँसे थम गयी…
खुली आँखे
शायद सुनना चाहती थी !

काश! वो कह देती
माँ जी पानी मैं दे देती ….

परिचय :- नरपत परिहार ‘विद्रोही’
निवासी : उसरवास, तहसील खमनौर, राजसमन्द, राजस्थान
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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