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राम नाम की मधुशाला (भाग- ३)

प्रेम नारायण मेहरोत्रा
जानकीपुरम (लखनऊ)
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नाम नशेमें डूबी शबरी,
नित्य बाहरू करती थी।
प्रभू राम आएंगे निश्चित,
गुरु वचन पर मरती थी।
इतना डूबी नाम नशे में,
जूठे बेर खिला डाला।
राम प्रेम मदिरा पीते थे,
वो बन बैठी मधुशाला।

जो करवाना चाहे ईश्वर,
उसको तू अर्पित हो जा।
उसकी कृपा मानकर अपने,
अहम भाव को तू खा जा।
तू तो केवल निमित मात्र है,
ईश्वर बस करने वाला।
हर पल जाम नाम के पीकर,
तू भी बन जा मधुशाला।

नारायण खुद राम रूप,
धरकर पृथ्वी पर आए थे।
मान बढ़ाने को हनुमत का,
उनको काम बताये थे।
राम नाम की मदिरा पीकर,
लंका को था जला डाला।
नहीं जली बस एक कुटी,
जो राम नाम की मधुशाला।

राम नाम इतना फलदायी,
पूर्ण कवच बन जाता है।
जो भी इस मदिरा में डूबा,
मन वांछित फल पाता है।
बाल्मीक ने नाम जपा तो,
उन्हें सुपात्र बना डाला।
नाम जाप में डूब गया जो,
वो बन बैठा मधुशाला।

परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा
निवास : जानकीपुरम (लखनऊ)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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