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अकेले हम

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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नहीं समझ पाया था
जन्मदात्री माँ का दर्द
कर्ज में डूबे पिता प्रति
एक पुत्र का अहम फर्ज़

सोचता था बस यही
जन्म दिया है इन्होंने
कर्तव्य तो निभाना ही था
कौनसा एहसान किया है

जब मैं स्वयं पिता बना
और पत्नी माँ बनी
बदल गई हमारी दिनचर्या
सुबह से रात तक की

तुम्हें कोई दर्द होने पर
रातभर तीमारदारी करना
और जब तुम सोते थे
जल्दी से काम निपटाना

हम दोनों बारी बारी से
लेने लगे थे छुट्टियाँ
जब तुम्हारे दाँत निकले
या ठुमक के चलना सीखे

तुम्हारे स्कूल की मांगें
जब भारी होने लगी
हमारे शौकों की फ़ेहरिस्त
छोटी होने लगी थी

तुम्हारी पढ़ाई व नौकरी
और ब्याह की रस्मों में
खाली कर दिए सब खाते
हमारा अरमान जो थे तुम

अचानक चल दिए तुम
अपनी ऊँची उड़ान पर
रह गए दोनों वैसे ही
जैसे थे कभी अकेले हम

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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