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दर्द सहकर भी

आलोक रंजन त्रिपाठी “इंदौरवी”
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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दर्द सहकर भी विजयपथ की तरफ बढ़ना पड़ेगा
मंजिलें हैं पास फिर भी दो कदम चलना पड़ेगा
हर नये संकल्प का आगाज़ साहस से करें हम
तोड़कर इक दायरा अब सीढियां चढ़ना पडेगा

चांद पर भी दाग़ का धब्बा दिखाई दे रहा
हर तरफ आकाश ही उड़ता दिखाई दे रहा
मन की ये ऊंची उड़ानें ब्योम तक पहुंचेगी कब तक
इस समन्दर में ये मन घुलता दिखाई दे रहा
कब तलक इन आंधियों के बीच में रहना पड़ेगा
दर्द सहकर भी ……

प्यास की चिंगारियों के बीच कैसे नींद आये
इस पिपासा को बुझाने का कोई रस्ता बताये
धैर्य भी है चैन भी है फिर भी कुछ खलती कमी है
कोई मेरे पास आकर प्रेम की लोरी सुनाये
बिखरते सपनों को सिलकर चादरें बुनना पड़ेगा
दर्द सहकर भी ……

जिस खुशी के वास्ते हमनें सभी संकल्प त्यागा
जिसकी यादों में विलय होता रहा दिन-रात जागा
उस शिखर के पास आकर अब शुकूं से जी सकूं
बस इसी अतिरेक में पक्का हुआ मेरा इरादा
रास्ते तो हैं बहुत पर एक अब चुनना पड़ेगा
दर्द सहकर भी ……

परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी “इंदौरवी”
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य)
लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के चल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, २०१६ से लेखन में अभिरुचि
विशेष : आध्यात्मिक प्रवक्ता एस्ट्रोलॉजर
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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