हंसराज गुप्ता
जयपुर (राजस्थान)
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वह नशा कहां, जब निशा जगाकर, बातों में खो जाते थे,
दशा दिशा से श्वास मिलाकर, हाथों में सो जाते थे,
बचपन में लौट के देखा तो, मिली कहीं ना तन्हाई,
जाड़े की रातें, घोर अंधेरा, लिपट भाई के रात बिताई,
सपने लेकर, भोर जगाते, सूर्यदेव से गर्मी पाते,
बाहों में बाँह डाल इतराते, सबकुछ खोकर मुझे मनाते,
जंगल में दंगल कर रूठा तो, मेरे हंसने पर खुशी मनाये,
काश! मेरे बचपन का भाई, एक बार फिर से मिल जाये।एक पेट से जन्म लिया है, एक ही मां का दूध पिया है|
पोशाक सिलाई, थान एक, पढे पढ़ाये, एक दीया है,
मुझे जिताकर, जोर की ताली, मेरी थाली रहे न खाली,
होती कोई चीज निराली, अपने हिस्से की मुझको डाली,
भूलूं कैसे, मुझे चोट लगे, तेरी आंखों से आंसू आये,
काश! मेरे बचपन का भाई,एक बार फिर से मिल जाये।चुका देता, मेरा उधार, लड्डू मुझको,चूरा खुद खाये,
दोष कभी देखा ना मेरा, पौंछे आंसू, हाथ फिराये,
नभ में जो तूने पतंग चढ़ाली, हक था, मैंने उसे कटा ली,
अब क्या खोट देखूंगा तुझमें, खुद की चादर मुझे उढा दी,
करके मनमानी, भूल सयानी, मैं कच्ची कौड़ी बन जाता,
राजा हो तेरा छोटा भैया, तू मेरी घोडी बन जाता,
जीतूं मैं जीवन का खेला, आशीष लुटाकर पाठ पढ़ाये,
काश! मेरे बचपन का भाई, एक बार फिर से मिल जाए।दो लोटे डाल बाल्टी में, हम एक दूजे को नहलाते,
तन मन का मैल निकल जाता, जब तैल लगाकर सहलाते,
मां मेरी मेरी करके पल्लू में, लुकाछिपी के खेल नये,
बाबूजी के दोनों कंधों पर, चिपके बैठे बाजार गये,
तेरा साथ रहा तब तक तो, एक भी बाजी ना हारी,
तय है सिर पर हाथ रहा तो, मैं जीतूंगा दुनिया सारी,
परिचय :- हंसराज गुप्ता, लेखाधिकारी, जयपुर
निवासी : अजीतगढ़ (सीकर) राजस्थान
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।
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