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आह्वान

राम स्वरूप राव “गम्भीर”
सिरोंज- विदिशा (मध्य प्रदेश)

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राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता सृजन प्रतियोगिता विषय “हिन्दी और हम” में प्रेषित रचना।

हिन्दी में ही लिखो हिन्दी में ही गुनगुनाओ रे।
मातृभाषा हिन्दी, मृत भाषा न बनाओ रे।।

रक्षा करो इसकी यह है माई अपने देश की।
नारी शक्ति बहु-बेटी के सदृश देश की।।
देसी भाषा चाहो, और विदेशी ठुकराओ रे।
मातृभाषा हिन्दी मृत भाषा न बनाओ रे।।

नव ग्रहों में सूर्य ऐसी भाषा अपनी हिन्दी है।
पूनम का चांद, माथे बिन्दी जैसी हिन्दी है।।
ऋतुओं में बसंत, संत इसे अपनाओ रे।
मातृभाषा हिन्दी मृत भाषा न बनाओ रे।।

मंथन करोगे तो पाओगे ज्ञान अमृत।
अध्ययन करोगे मान पाओगे ही अनवरत।।
यह है रत्न सिन्धु, डूबो शुद्ध मोती पाओ रे।
मातृभाषा हिन्दी मृत भाषा न बनाओ रे।।

सम्बन्ध हिन्दी हिन्द का, अटूट है, अभिन्न है।
हिन्दी को जो हेय समझे, उनसे ही मन खिन्न है।।
है “गम्भीर” साथ, तुम भी साथ मेरे आओ रे।
मातृभाषा हिन्दी मृत भाषा न बनाओ रे।।

परिचय :- राम स्वरूप राव “गम्भीर” (तबला शिक्षक)
निवासी : सिरोंज जिला- विदिशा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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