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महिमा

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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सच है तेरी लज्जा – मर्यादा भी, नारी तेरा हथियार है ।
उद्देश्य निकलने का घर से, प्रथम देहली से तू बोलना।।

जब भी अवसर आये, अवगुण या आसुरी वृत्ति हो।
प्रकट होता शक्ति अवतार, भीतर अपने टटोलना ।।

नहीं अरी कोई तेरा, तू सबको देती प्रेम है।
हृदय के विशाल महलों से, घृणा के ताले खोलना।।

घर के संस्कारों का, सच्चा दर्शन होता वाणी से ।
स्फुटीत होने वाले शब्दों को, पहले काँटे पर तोलना ।।

समर्पण संतोष भाव, दिया प्रभु ने तुझको सहज ।
थोड़ा मिला ज्यादा मिला, सीखा तुने स्वीकारना।।

असीम गुणों का और भी, तुझमे अमित भंडार माँ।
निज संतती को देना, और, कहना इसे संभालना ।।

परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र
आयु : ४१ बसंत
निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश)
विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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