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न जाने क्यूँ

आनन्द कुमार “आनन्दम्”
कुशहर, शिवहर, (बिहार)
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न जाने क्यूँ लोग मुझे नहीं समझते,
मेरे अल्फ़ाज़ों को नहीं पढ़ते।

मेरे तजुर्बे को उँगली दिखाते
उम्र का बहाना करके,

क्या कमी हैं मुझमें
हर वक्त यही ढूंढता रहा मैं
रौशनी से जगमगाते आँगन में
सारा चिराग़ बुझाकर,

शाम को सुबह से मिलाने की जद्दोजहद में
खुद को जैसे जला दिया,
राखों के ढ़ेर पे बैठ कर
न जाने कौन सा मोती मार गया।

परिचय :- आनन्द कुमार “आनन्दम्”
निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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