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इतना आसान है क्या

दशरथ रांकावत “शक्ति”
पाली (राजस्थान)

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तुमने कह तो दिया भूल जाओ
भूलना इतना आसान है क्या,
मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं
जीना बिन तेरे आसान है क्या।
सूख जाता है जब कोई शज़र
छूट जाता है पत्तों का घर,
टूटे पत्तों से जाकर के पूछो
टूटना इतना आसान है क्या।
मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं….

जाने कितनी दफा हम तुम
एक दूजे से छुप-छुप मिले,
भूल जाते थे शिकवे सभी
जब भी नैना से नैना मिले।
इतने पहरो में मिलना कोई
जान बोलो ना आसान है क्या।
मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं…

याद तुमको वो वादे भी है क्या
तुम थे मैं था और कोई नहीं,
जाने कितनी ही रातें बिताई
मैं जगा तुम भी सोई नहीं।
इश्क़ की ऐसी लहरें उठी
तैरना इतना आसान है क्या।
मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं…

मैने माना था सब कुछ तुम्हें
तुमने धोखा दिया क्यू मुझे,
तुम सजाओगी घर को मेरे
हाय सपनो के दीपक बूझे।
तेरे सपनो में डूबा था मैं
डूबना इतना आसान है क्या।
मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं…

जिंदगी का जहर पी रहा हूँ
बिन तेरे मैं भी जी तो रहा हूँ,
तुमने शहरो की रस्में निभाई
मैं भी जख्मों को सी तो रहा हूँ।
याद कर-कर के आँसू बहाऊ
भूलना इतना आसान है क्या।

तुमने कह तो दिया भूल जाओ
भूलना इतना आसान है क्या,
मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं
जीना बिन तेरे आसान है क्या।

परिचय :-दशरथ रांकावत “शक्ति”
निवासी : पाली (राजस्थान)
सम्प्रति : लेखाकार
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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