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बेमौत मरती नदियां, त्रास सहेंगी सदियां।

आशीष तिवारी “निर्मल”
रीवा मध्यप्रदेश
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छठ पर्व पर एक भयावह तस्वीर यमुना नदी दिल्ली की सामने आयी, जिसमें सफेद झाग से स्नान वा अर्क देते श्रद्धालु दिखे। यह बात तो जगजाहिर है कि समूचे विश्व में हिन्दुस्तान ही एक ऐसा देश है जहां नदियों को माँ की उपमा दी गई है, पवित्र माना गया है। लेकिन वर्तमान समय में जितनी दुर्दशा हिन्दुस्तान में नदियों की है शायद ही किसी अन्य राष्ट्र में हो। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा अलग-अलग राज्यों की निगरानी एजेंसियों के हालिया विश्लेषण ने इस बात की पुष्टि की है कि हमारे महत्वपूर्ण सतही जल स्त्रोतों का लगभग ९२ प्रतिशत हिस्सा अब इस्तेमाल करने लायक नही बचा है। वहीं रिपोर्ट में देश की अधिकतम नदियों में प्रदूषण की मुख्य वजह कारखानों का अपशिष्ट गंदा जल, घरेलू सीवरेज, सफाई की कमी व अपार्याप्त सुविधाएं, खराब सेप्टेज प्रबंधन तथा साफ-सफाई के लिए नीतियों की गैरमौजूदगी को माना गया है। देश की राष्ट्रीय नदी गंगा और यमुना अभी बहस के केंद्र में है। साल-दर-साल गंगा और यमुना नदी के प्रवाह में दर्ज होते प्रदूषण के स्तर से नदी को साफ करने के लिए की जा रही कोशिशों पर सवाल उठते हैं। पिछले साल अगस्त में एनजीटी, जो गंगा को साफ करने के कार्यक्रम की निगरानी करता है, ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कहा था कि वह नदी के इन हिस्सों की शिनाख्त करे, जहां का पानी नहाने और पीने के योग्य है। बोर्ड ने इस बाबत एक मानचित्र तैयार किया जिसमें बताया गया है कि गंगा और यमुना के मुख्य मार्ग के पानी की गुणवत्ता चिंताजनक है। वहीं इन नदियों में प्रदूषण की स्थिति जस का तस बनी हुई है या यूं कहे कि स्थिति बद् से बदत्तर होती जा रही है। केंद्र सरकार ने गंगा की सफाई को प्रमुख एजेंडे के रूप में प्राथमिकता देते हुए तीन चार साल पहले नदी सफाई कार्यक्रम शुरू किया था, लेकिन इस कार्यक्रम के शुरू होने के तीन साल बाद भी यमुना में पानी की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं दिखा है। सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के कई आदेशों के बावजूद दिल्ली में यमुना का लगभग पूरा इलाका बुरी तरह प्रदूषित है।

कोविड माहामारी के चलते भारत सरकार की तरफ से लागू किए गए लाकडाउन से गंगा और यमुना जैसी नदियों की गुणवत्ता पर पड़े प्रभावों को जानना भी दिलचस्प है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने लॉकडाउन से पहले (१५ से २१ मार्च) व लॉकडाउन के दौरान (२२ मार्च से १५ अप्रैल) गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता का विश्लेषण किया, जिसमें साफ तौर पर पता चला कि लॉकडाउन से इस पर कोई असर नहीं पड़ा। इसके विपरीत यमुना नदी के पानी की गुणवत्ता में लॉकडाउन के दौरान मामूली सुधार हुआ, हालांकि नदी प्रदूषित ही रही। गंगा पर तैयार की गई रिपोर्ट में असल आंकड़े साझा नहीं किए गए हैं, लेकिन एक मोटा-मोटी ट्रेंड दिखाया गया है, जिससे पता चलता है कि अध्ययन की अवधि में बीओडी और सीओडी के स्तर में किसी तरह का बदलाव नहीं आया, जो इस बात का संकेत है कि लॉकडाउन के दौरान गंदे पानी का बहाव कम नहीं हुआ। रिपोर्ट कहती है, “औद्योगिक गंदे पानी, कृषि सिंचाई के पानी की अनुपस्थिति और ताजा पानी के बहाव के कारण डिजॉल्व्ड ऑक्सीजन में औसत इजाफा और नाइट्रेट में गिरावट दर्ज की गई।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की २०१८ की रिपोर्ट भी बेहद चिंताजनक है रिपोर्ट के मुताबिक देश के ३६ राज्य व केंद्र शासित प्रदेशों में से ३१ में नदियों का प्रवाह प्रदूषित है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा लगभग पचास से भी ज्याद प्रदूषित प्रवाह हैं। इसके बाद असम, मध्यप्रदेश, केरल, गुजरात, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, गोवा, उत्तराखंड, मिजोरम, मणिपुर, जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना, मेघालय, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, तमिलनाडु, नागालैंड, बिहार, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, सिक्किम, पंजाब, राजस्थान, पुडुचेरी, हरियाणा और दिल्ली का नंबर आता है।

साल २०१५ में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से जारी की गई रिपोर्ट में बताया गया था कि २७५ नदियों के ३०२ प्रवाह प्रदूषित हैं जबकि साल २०१८ की रिपोर्ट में यह आंकड़ा तेजी से बढ़ते हुए ३२३ नदियों के ३५१ प्रवाह प्रदूषित होने तक पहुंच गया है। पिछले तीन सालों में देखा गया है कि खतरनाक रूप से प्रदूषित ४५ प्रवाह ऐसे हैं, जहां के पानी की गुणवत्ता बेहद खराब है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अधिसूचित किया कि नदियों में छोड़े जाने वाले परिशोधित गंदे पानी की गुणवत्ता काफी खराब है और इसमें बोयोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड यानी बीओडी जो कि प्रदूषण को मापने का एक पैमाना है जिसकी मात्रा प्रति लीटर ३० मिलीग्राम है। एक लीटर पानी में ३० मिलीग्राम से अधिक बीओडी को पानी की गुणवत्ता बेहद खराब होने का संकेत माना जाता है। लेकिन भारत की नदियों के जल में यह मात्रा ३० मिली ग्राम से ऊपर होती जा रही है जो कि बेहद चिंता का विषय है।
हमारी नदियां मर रही हैं। यही हाल ईकोसिस्टम का है, जो नदियों को बचाए रखता है। नदियों पर न केवल प्रदूषण बल्कि इसके रास्ते में बदलाव, खत्म होती जैवविविधता, बालू खनन और कैचमेंट एरिया के खत्म होने का भी असर पड़ा है। अन्य खुले जलाशय जैसे झील, तालाब या टैंक या तो अतिक्रमण का शिकार हैं या फिर वे सीवेज और कूड़े का डंपिंग ग्राउंड बन गए हैं। प्रदूषित होती नदियों या जलाशयों के भयावह परिणाम हो सकता है आज हमे दिखाई नही दे रहें हैं या दिख भी रहे हैं तो हम जान बूझकर अनदेखा कर रहे हैं लेकिन नदियों के बचाव हेतु जल को साफ रखने हेतु यदि ठोस कदम नही उठाये जाते हैं तो इसके बुरे परिणाम आने वाली सदियों में पीढ़ियां भुगतेंगी हम और आप शायद यह कहने लायक भी नही रहेंगे कि लम्हों ने खता की सदियों ने सजा पाई।

परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय हैं, अपनी हास्य एवं व्यंग्य लेखन की वजह से लोकप्रिय हुए युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल की रचनाओं में समाजिक विसंगतियों के साथ ही मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण, भारतीय ग्राम्य जीवन की झलक भी स्पष्ट झलकती है, इनकी रचनाओं का प्रकाशन एवं प्रसारण विविध पत्र-पत्रिकाओं एवं दूरदर्शन-आकाशवाणी के विविध केंद्रों से निरंतर हो रहा है। वर्तमान समय पर हिंदी और बघेली के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। इस आलेख में व्यक्त किये गए विचार मरे स्वयं के हैं। 


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