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बूंद जल की

मालती खलतकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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तुम रुक गए अविरल चलने वाले
क्या मोती सा दिखने के लिए
या सुमन सौरभ भा गई तूम्हे
यह सुमन पंखुड़ी का
आलिंगन भा गया तुम्हें
तुम तो अबाध गति हो विरल हो
अनवरत पाषाण को
खंड-खंड करते हो
खंड-खंड पाषाण पूछता है तुमसे
क्या तुम्हें कलि की
कमनियता भा गई
या रंग सुगंध मखमली पंखुड़ी की
सेज तुम्हें लुभा गई
या तुम स्वयं को मोती
समझने की होड़ में
चमक-चमक कर
चहेतों कामन लुभा रहे हो
दूर बहुत दूर की सोचते हो
पर जानते हो इतना
इतराना ठीक नहींं क्षणिक है
हां क्षणिक है क्योंकि
पंखुरी मुरझा कर गिर जावेगी
उसकी ही सजीली
नरम मखमली सतह पर
जिस पर तुम बैठे हो
तुम भी नीचे बह जाओगे
पुनः धरा पर अपने
अस्तित्व को लेकर
क्या फिर नहीं
जाओगे अवनी में
या सरिता में या
किसी प्यासे के कंठ में
उसकी प्यास बुझाने
उसे तृप्त करने
जो तुम्हारा ध्येय है
हे तुम अपना ध्येय
क्यों भूल रहे हो
ध्येय छोड़ोगे तो
हश्र क्या होगा
क्या फिर मोती से चमकोगे
जबाब दो जबाब दो।

परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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