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करम धरम ल पहचानव

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
बालोद (छत्तीसगढ़)
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अपन करम ल सुधार संगी
अपन धरम ल पुकार गँ..
जिनगी के नइय ठिकाना
हो जाही बेड़ापार गँ …

जइसे करनी वइसे भरनी
सब ल मनसे जानत हे …
कथनी करनी मँ भेद होगे
त पाछु ल पछतावत हे …

बदले गे संगी अब जमाना
सब ल तैंहा उबार गँ ….
अपन करम ल सुधार संगी
अपन धरम ल पुकार गँ..

संस्कार के बीज ल रोपो
पीढ़ी ल बताना हे …
नैतिक अऊ अनैतिक भेद ल
युवा जवाँ ल सिखाना हे ..
धरम संस्कृति हमर खजाना
जिनगी ल सँवार गँ…
अपन करम ल सुधार संगी
अपन धरम ल पुकार गँ..

आवत-जावत , हांसत-रोवत ,
इही जीवन के खेल हे ..
मिलत-जुलत अऊ ह बिछुड़त ,
दुनिया ह एक मेल हे ..

ऐके जीव सब मँ बसे हे
कर ले तैहा उपकार गँ …
अपन करम ल सुधार संगी
अपन धरम ल पुकार गँ..

मानव धरम एक हे भाई
समाज ल परखाना हे..
जात-पांत के भेद ल छोड़ो
भाईचारा ल अपनाना हे ..

*श्रवण* के अब ग्यान ल धरव
हो जही सब्बो के पार गँ…

अपन करम ल सुधार संगी
अपन धरम ल पुकार गँ..

परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
निवासी : भानपुरी, वि.खं. – गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़
कार्यक्षेत्र : शिक्षक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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