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छठ पूजा

डॉ. पंकजवासिनी
पटना (बिहार)
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प्रकाश और ऊष्मा की संजीवनी धारे
देदीप्यमान सूर्य की करूं मैं उपासना
सर्वतोभावेन कुशल हर्षित आनंदित हों सब
लोक-आस्था पर्व की अशेष मंगलकामना!

भारतीय समावेशी संस्कृति की साकार प्रतिमूर्ति उस छठ पूजा की अशेष मंगलकामनाएँ जहाँ उत्कर्ष ही नहीं, अपकर्ष का… उदयाचलगामी सूर्य की ही नहीं, अस्ताचलगामी सूर्य की भी पूरी श्रद्धा-भक्ति से ओतप्रोत होकर वंदना करते हैं कि बुरे/गर्दिश/पतन के दिन में भी किसी की उपेक्षा/अवमानना नहीं करो….. उसके भी सुदिन आएंगे और तब वह तुम्हारे जीवन को आलोकित करने, ऊष्मा की संजीवनी से आप्लावित करने की क्षमता रखता है….
जहाँ सभी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं कोई छोटा बड़ा, अमीर गरीब, धनी निर्धन, स्त्री पुरुष, सवर्ण अवर्ण नहीं…… बस श्रद्धा के पात्र हैं! जहाँ केला सेब नारियल ही नहीं, सुथनी शकरकंद व गगरा नींबू भी वांछित/पूजनीय है….. जहाँ समाज के हाशिए पर धकेल दिए गए सूप, दउरा बीनने वाले, मिट्टी के दीया कपटी कलश हाथी हुमानदानी बनाने वाले, डोरी, बद्धी अलता, छापा, लौंग, इलायची पान-कसैली सभी एक साथ और एकसमान जीवन की मुख्य धारा में शामिल हो जाते हैं….. !! जहाँ घोर आत्मकेंद्रित मनुष्य परिवार और समाज की ही नहीं, देवत्व की आधार भूमि चतुर्दिक स्वच्छता व तन-मन भाव व स्थान की पवित्रता निर्मल नदियों-जलाशयों को भी अपने जीवन में शामिल कर लेते हैं…. परिवार के बड़े-बुजुर्गों को महत्व देते हैं और सिरे से खारिज कर दिए गए लोकगीतों (जिनमें मिट्टी की सोंधी खुशबू लिपटी हुई है) को गले लगा लेते हैं और इन सब बातों चीजों के द्वारा अपनी मिट्टी, अपनी अतुलनीय संस्कृति से अपनी भावी पीढ़ी का परिचय कराते हैं सब कुछ क्रियान्वित करके (क्रियान्वयन के स्तर पर व्यवहारिक रूप से ) ताकि गौरवशाली आध्यात्मिक भारतीय संस्कृति प्रवहमान रहे….. अक्षुण्ण बनी रहे……!!!

परिचय : डॉ. पंकजवासिनी
सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय
निवासी : पटना (बिहार)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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