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ग़ुलाब

डॉ. बी.के. दीक्षित
इंदौर (म.प्र.)
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पत्ती-पत्ती, पंखुड़ि-पंखुड़ि,
ख़ुद में एक कहानी गढ़ते।
भोर सुहाना, दिन मस्ताना
रंग निराले ख़ुद में भरते।

तोड़े बिना डाल से इनको,
ध्यान मग्न हो देखा करिये।
टूट रूठकर गिरें जमीं पे,
अंजुरि भर, मत फेंका करिये।

प्रीति ग़ुलाबों सी होती है,
महक़ परिंदे सम उड़ती है।
सूख जाएं तरु के प्रसून,
ख़ुशबू कभी न कम होती है।

परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष भी हैं।
सम्मान – राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान


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