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दीपावली का कर्ज

अखिलेश राव
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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कर्ज से परेशान मांगू ने सोचा
अब दीपावली कैसे मनायेगा
अच्छा तो यह है कि वह.
गोली खाकर मर जायेगा।
काम से लौटकर घर आया
आते ही धनिया ने
सारा किस्सा सुनाया
क्या करता क्या कहता
ऐसे दुख रोज ही सहता।
फिर धनिया बोली चलो छोड़ो
हाथ पांव धोलो
बची खुची खिचड़ी
आज बना ली है
में और तुम बचे हैं
बच्चों ने अपने-अपने
हिस्से की खा ली है।
दोनों ने मिलकर खाना खाया
मांगू बोला में थोड़ा
टहलकर आया
टहलकर आया बीबी
बच्चों को सोता पाया
सोचा अच्छा है अब
गोली खा लूंगा
सारी मुसीबतों से एक साथ
छुटकारा पा लूंगा।
उसे क्या मालूम धनिया ने
खिचड़ी नहीं खाई है
परिवार के लिए पानी पीकर
डकार लगाई है
खाली पेट नींद नहीं आ रही थी
खाट पर हाथ पांव हिला रही थी।
मांगू ने मौका पाकर
गोली खाने की हिम्मत जुटाई
इतने में धनिया की आवाज आई
सुनते हो रामू के बापू
साहूकार आया था कल फिर आयेगा
कह रहा था रूपये नहीं दिए तो
पीतल का हंडा ले जायेगा
चुनिया को फिर स्कूल से भगाया है
मास्टर कहता है
तुम्हारा शुल्क नहीं आया है।
अगले हफ्ते तक फीस
नहीं चुकायी जायेगी
क्या मेरी तरह वह भी
अनपढ रह जायेगी।
दो चार दिनों में
रामू की नौकरी भी छुट जायेगी
उसकी फेक्ट्री में मशीन आ जायेगी।
कहते कहते धनिया सो गई
मांगू की योजना मर गई
सोचने लगा
मे स्वार्थी हो गया हूं
सबको फंसा आत्महत्या कर रहा हूं।
अब ऐसा नहीं करूंगा
कल से दोगुना काम करुंगा
बेटा बेटी दोनों को पढाउंगा
परिवार को आगे बढाउंगा
कर्ज से परेशान हो
हर मांगू मर जायेगा
तो इस पुण्य धरा पर
हल कौन चलायेगा।
मर भी गया तो क्या हो जायेगा
मरने के बाद कर्ज
थोडे ही चुक जायेगा
भारत को पुन सोने की
चिड़िया बनाना है
काश्मीर की क्यारी में
केशर लगाना है।
जो भी मिल बांटकर खायेंगे
परिवार के साथ पटाखे फोडेंगें
फुलझडी चलाएंगे
दीपावली पर झुमेंगें
और खुशी के गीत गायेंगे।

परिचय :- अखिलेश राव
सम्प्रति : सहायक प्राध्यापक हिंदी साहित्य देवी अहिल्या कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय इंदौर
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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