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नवदीप जलाये

महेन्द्र सिंह कटारिया ‘विजेता’
सीकर, (राजस्थान)
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झिलमिल-झिलमिल,
नवदीप जलाये।
मन मलिनता,
तमस दूर भगायें।….
शुभ अवसर है धनत्रयोदशी,
खूब सजे बाजार।
नर-नारी प्रफुल्ल हो,
खरीद रहे उपहार।
बालगोपाल मन भा रही,
वस्तु मनबहलाव।
नवोदित परिधान संग,
फुलझड़ी पटाखों का चाव।
अम्माँ बर्तन गहने,
घरेलू उत्पाद मंगाये।
झिलमिल झिलमिल,
नवदीप जलाये।….

घर आँगन में बहिना ने,
दीपक प्रज्वलित किये कतार।
गाँव नगर में चहुंओर,
मानों छाई खुशियाँ अपार।
उजाले की उमंग से फैला,
खुशियों का सैलाब।
मिट रहा अशुभ अनीति,
अधर्म का फैलाव।
आओं मिल सब,
राष्ट्रप्रेम के गीत गुनगुनाये।
झिलमिल झिलमिल,
नवदीप जलाये।….

परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया ‘विजेता’
निवासी : सीकर, (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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