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हरसिंगार

निरूपमा त्रिवेदी
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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सुनो !!!! प्राणाधार तुम मेरे
सौंपा था जो तुमने कभी जो मुझे
रोपा था जिसे कभी हाथों से अपने
स्नेह से सींच-सींच वह हरसिंगार मैने
रखा है सदा सहेजकर अपने आंगन में
जलधि रखता है जैसे मोती सीप में
आंधियों से बचाते हुए बहुधा उसे
देखा था तुम्हें भी तो मैंने यत्न से
हां !हां! वही हरसिंगार है अब कुसुमित
नेह परिजात उस पर है सुशोभित
तुम-सा ही तो महकता है यह हरसिंगार
झर – झरकर मेरी राह में बिछता है बार-बार
सुनों ! ! प्राणाधार तुम मेरे
तुमसा ही तो महकता-महकाता है ये हरसिंगार

परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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