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मालवा की पहचान

मालती खलतकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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१ नवंबर को मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस है इसी उपलक्ष्य में मैं मालवा की पहचान नामक अपनी स्वरचित अप्रकाशित प्रसारित रचना प्रस्तुत कर रही हूं जिसमें मालवा प्रदेश के ग्रामीण जनजीवन प्रतिदिन के नित्य कर्म को दर्शाया गया है आशा करती हूं पाठक वर्ग रचना की गहराई को समझेंगे धन्यवाद।

छत से निकलती धूएं की लकीर
मन में लिए हुए साहू की पीर
अधरों पर फिर भी है राम का नाम
वह देखो चला है मालव का किसान
यही मेरे मालव की प्रातः पहचान

घुंघरुओं की छनन-छन
पगडंडी पर फैले पत्तों की चररचर
बैलों की झुकती गृवाऐ मानो
उगते रवि को करती है प्रणाम
यही मेरे मालव की प्रातः पहचान

गायों के गोठो से उठती दुलार भरी डपटे
कंधों पर डाले मटमेले गमछे
हाथों में थामे दूध पात्रों का भार
मस्त हो गा रहा आल्हा ऊदल के गान
मेरी काली माटी का जवान
यही मेरे मालव की प्रातः पहचान

अंगना बुहारती कोई बसंती
कोई ले गगरिया पनघट पर मिलती
ठिठुरती वृध देह अलाव तक सिमटती
मग से जाता किसान करता है राम-राम
यही मेरे मालव की प्रातः पहचान

किलकारी यों से गूंजते गांव के आंगन
मथ रही मटकी यों में मही कई मथुरा ऐ
नाचती मथनियो संग खनकती है चूड़ियां
आंगन में बैठी बतियाती महतरियां
आओ बताऊं तुम्हें गांव की दुपहरिया

अरे रुको सुनो दूर कहीं से
आ रही भूखे बच्चे की आवाज
मां को पुकारता धरती का लाल
आ रही दूर कहीं से उपलों की थप-थप
संग मेें मां कहती रुक मरे थम-थम
आई आंचल से सिर को है ढाकती
कहती है बिटिया को कुछ ले आ अमिया
आओ बताऊं तुम्हें गांव की दुपहरिया

सूरज है सिर पर सरजू जा खेत पर
मक्का की रोटी छाछ की गगरिया
करती है चिंतक स्वर में घर की महतरिया
आओ बताऊं तुम्हें गांव की दुपहरिया

पनघट पर पछिटती
हरी पीली बांधनी
कोई पहनती कोई सुखाती
आंचल की चांदनी
कोई कहे सास ननंद की
कोई देवर की ठिठोलीया
आओ बताऊं तुम्हें गांव की दुपहरिया

हवा में गूंज आवाज की सुन
गगरिया उठाती बसंती बोली
चलो मैं चली सास हैं पुकारती
अरी चली कहाँ हम भी
चलता है कहती परबतिया
आओ बताऊं तुम्हें गांव की दुपहरिया

दीयों से तुलसी क्यारे सज गये
चारपाई आंगन में बिछ गई
घर के खपरैल से धुंआ निकल रहा
रोटी की सोंधी गंध आ रही

शाम हो गई मोहन नहीं आया
महतारी बुदबुदा रही
देखो अब तारों से
आकाश भी सज गया
आओ बताऊं तुम्हें गांव की संख्या

खपरेलों से उठ रहा धुए का अंबार
टाटी की आड़ से चिल्ला रहा किसान
लगा दे चिलम में कपड़े का डाटा
दूर कहीं गुहार रहा गांव का ग्वाला
आओ बताऊं तुम्हें गांव की संध्या

देखो अब संध्या भी रात में बदल गई
डालकर के खटिया आंगन भी सज गए
म्हातारी लेट गई लेकर के गुदड़ी
आओ बताऊं तुम्हें गांव की चांदनी
आओ बताऊं तुम्हें गांव की चांदनी

परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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