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एक दीप भीतर भी

रुचिता नीमा
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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घर-घर अनेक दीप जले,
चारों और प्रकाशित है समां,
रोशनी की चकाचौन्ध में,
हर तरफ दमक रहा है जहाँ।।

हो रही तैयारी चहुँ और,,
हर कोई उमंग से है भरा,
रांगोली से सजे है घर आँगन,
और दरवाजों पर नव तोरण बंधा।।

नव वस्त्र, नव आभूषणों से,
चारों और बाजार है सजा।।
चहक रहे है जनमानस सब,
दीवाली का त्योहार है बड़ा।।

आओ इस पावन पर्व पर,
हम भी करें अलग कुछ थोड़ा,
द्वार द्वार जैसे दीप जलाए,
करें अंतर्मन भी रोशन जरा।।

मिटाकर मन से राग द्वेष,
करे भीतर को भी साफ़ सुथरा,
घर बाहर के साथ साथ,
भीतर भी रहे फिर उजास भरा।।
भीतर भी रहे फिर उजास भरा।।

परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं।

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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