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दिवाली के पटाखे

निर्दोष लक्ष्य जैन
धनबाद (झारखंड)
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श्याम ओर मोहन दोनों में घनिष्ट मित्रता थी। दोनों एक-एक दूसरे पर हमेशा समर्पण का भाव रखते है। स्कूल से कालेज तक दोनों टापर थे मोहन फर्स्ट तो सोहन सेकेंड। मोहन जानता था की श्याम जान बूझकर सेकेंड होता है एक प्रश्न हल नहीं करता की मोहन फर्स्ट हो जाए ये बात मोहन के पिताजी भी जानते थे उनकी दोस्ती का लोहा सभी मानते थे। एक साल पहले श्याम के पिता का देहांत होगया था वो एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे। उसके घर के हालात ठीक नहीं थे। दीपावली आरही थी, श्याम चिंतित रहता था इस साल दीवाली कैसे मनेगी घर में छोटी बहन भी थी माँ ओर बहन के कपड़े तो जरूरी थे। श्याम की चिंता मोहन से छिपी न रही उसने पूछा श्याम क्यों परेशान हो सच कहो दोस्ती की कसम। श्याम कसम के आगे मजबूर हो गया बोला अब मेरी आगे की पढ़ाई नहीं हो सकती मुझे कही नौकरी करनी पड़ेगी दीवाली का खर्च भी है मोहन बोला भाई एक साल की ही तो बात है किसी तरह पूरी करलो। श्याम ने मजबूरी बताई बोला ये संभव नहीं है।मोहन परेशान होगया उसने सारी बात अपने पिताजी को बताई वो कुछ देर सोचते रहे फिर बोले आज रविवार है श्याम के घर चलते है। दोनों श्याम के घर जाते है मोहन के पिता को श्याम ओर उसकी माँ बहुत खुश होती है। उनके लिये चाय नाश्ता बनाती है। कुछ देर बाद मोहन के पिता बोले बहन मुझे पता चला की श्याम पढ़ाई बीच में ही छोड़ रहा है उसे मना कीजिए पढ़ाई पूरी करे एक साल की ही बात है ओर श्याम मोहन अलग नहीं है मैं खर्च उठाऊंगा वह पढ़ाई जारी रखे वो होनहार है एक साल बाद अच्छी नौकरी मिल जायगी मैं जानता हूँ आप लोग खुद्दार है इसलिए आप जो खर्च होगा वो मेरा कर्ज रहेगा श्याम जब नौकरी करेगा तो धीरे-धीरे वापस कर देगा। श्याम मजबूर होगया मोहन बोला यदि तुम पढ़ाई छोड़ दोगे तो मैं भी आगे नहीं पढूंगा श्याम को उनकी बात माननी पड़ी मोहन के पिता दोनों को लेकर बाजार गए सबके दिवाली के कपड़े पटाके मिठाई सभी समान लिया श्याम की आँखो में आंसू छलक रहे थे उसने मोहन को छाती से चिपटा लिया ओर पिताजी के चरण स्पर्श किए। बोला अंकल आप भगवान है मैं आपका ये उपकार जीवन भर नहीं भूलूँगा उन्होने उसे छाती से लगा लिया।

परिचय :- राजीव निर्दोष लक्ष्य जैन
निवासी – धनबाद (झारखंड)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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