Sunday, December 22राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

रेलगाड़ी की खिड़की

अमिता मराठे
इंदौर (मध्य प्रदेश)
********************

सावन की छुट्टी खतम हो गई थी। वह अष्टमी से बासी दशहरे के अवकाश पर गाँव आया था। जब से साबरमती में जाॅब लगा वह बहुत खुश था। माँ ने आवाज देकर कहा सावन सामान पूरा पेक कर दिया है। दो तीन कमरों वाला मकान ढूंढ ले तब सब आसान हो जायेगा।
हां माँ, “आप ठीक कह रही हैं।”
रेलगाड़ी समय पर चल पड़ी। गाँव के दोस्तों को अलविदा कहते सावन गाड़ी में बैठते ही खिड़की से सभी प्रियजन लद ओझल होने तक हाथ दिखाता रहा। फिर आराम से सामान जमाया और अपने आसपास देखने लगा। दूसरी खिड़की के पास एक वृद्ध महिला सिमटी हुई बैठी थी। उसने सामान भी सीट पर अपने आसपास लगाकर रखा हुआ था। शायद वह अकेली थी। आप कहां जा रही है? पूछने पर कुछ अस्पष्ट जवाब दिया। फिर सावन भी चुप हो खिड़की के बाहर देखने लगा। वृद्धा टकटकी लगाए बाहर देख रही थी।
हर स्टेशन पर वह खिड़की के बाहर झुककर ऐसी देखती थी मानो उसकी आंखें किसी को तलाश रही हो।
अम्मा कोई आने वाला है आपको लेने के लिए। ये लो थोड़ा खाना खा लो ।सावन ने बहुत प्रेम से कुछ खाने की चीजें दी, लेकिन उसने मना करते हुए बोला मेरे पास हैं, बेटा आयेगा हम दोनों मिलकर खायेंगे।
सावन ने देखा यूं कहकर वह उदास हो गई थी। उसने थोड़ा पानी पीने का उपक्रम किया और फिर से खिड़की के बाहर देखने लगी।
मेरी सहानुभूति का असर मुझे नहीं लगता उस पर कोई पड़ा हो। लेकिन उसके रवैये से मेरा मस्तिष्क अनेक प्रश्नों में उलझ गया था। मैं तो उसके प्रति सहयोग की भावना से ही निकट आना चाहता था। वैसे तो वह प्रतिष्ठित घराने की महसूस हो रही थी। पढ़ी लिखी लगी, यह अंदाज मैंने उसके सिरहाने अमृत, कादम्बिनी जैसी पत्रिकाओं को देखकर लगाया था। चाहता यही था कि वह मुझसे कुछ बातें करें। यह उसके लिए करूणा भाव दर्शाना मात्र था।
इसके बीच पास में बैठे यात्री से बतियाने लगा। सफर को हल्का करने का यह तरीका बहुत अच्छा होता है। बशर्ते कि अपनी आदत और जनरल नॉलेज उत्तम दर्जे का हो। लेकिन उस अम्मा को देखते हुए बार-बार विचारों के ताने-बाने में फंस रहा था। मित्र से मैंने पूछा, इस अम्मा को कहां जाना होगा। ये बेसब्री से किसी के इंतजार में हैं। मित्र ने लापरवाही से जवाब दिया, शायद पागल लग रही है। इसे दो दिन पहले भी मैं जब साबरमती जा रहा था ये ऐसी ही बैठी थी। लेकिन रेलवे कर्मचारी इसके साथ अच्छा व्यवहार करते हैं। मैंने इसे बात करते हुए नहीं देखा था। मित्र को सुनते ही मेरी उत्सुकता और बढ़ गई थी। सच है जो रंग भर दो उसी रंग में नजर आये, मतलब ये जिंदगी न हुई कांच का गिलास हुआ।”
किसी शायर की यह कल्पना सौ फीसदी सच लगी। उस अम्मा को देख रहस्य खुलने का इंतजार बढ़ने लगा था।
रात्रि के आठ बज रहे थे। एक लड़का उसके पास आया उसे खाना खिलाया और कहा माँ अब सो जाओ कल सुबह आऊंगा। कहते वह जाने लगा। मैंने उसे अपने पास बिठाया और अम्मा के बारे में जानकारी लेने के उद्देश्य से बातचीत करने लगा। बोलने में चाणाक्ष उस लड़के ने कहना शुरू किया। अम्मा के दो बेटे हैं, रघुवीर और महावीर दोनों ही फौज में है। रघुवीर आतंकवादियों की मुठभेड़ में शहीद हो गए थे। लेकिन अब महावीर का भी पता नहीं है। इसी रेल से इसी खिड़की से देखते हुए हाथ हिलाते गये थे। एक दिन अम्मा ने हिम्मत से अपने बेटे की तलाश शुरू कर दी। बस यह रेल इंदौर से गांधी नगर फिर गांधीनगर से इंदौर इसका सफर जारी है। वह सोचती है मेरी खुशियां वापस लौटेगी। मेरा काम है इन्हें देखना और कोई खबर हो तो सुनाना।
अरे, “वाह बहुत अच्छा काम करते हो।”
अम्मा का घर, और रिश्तेदारों की जानकारी में उसने बस इतना कहा, शुरू में एक दो लोग आते थे लिवा ले जाने को फिर कोई नहीं आया। आज तो ये हमारी अम्मा ही हो गई। धीरे-धीरे मेरी स्मृति के पट खुलने लगे दूसरी तीसरी तक दो भाई साथ में पढ़ते थे नाम की याददाश्त धूंधली हो गई थी। उनके पापा भी फ़ौज में थे।
मैंने उस लड़के से कहा, अम्मा से मेरी बात करवा सकते हो। वह सहर्ष तैयार हो गया। उसने बड़े अदब से अम्मा को बोला, इन्हें आपसे बात करनी है। अम्मा ने खिड़की से मुंह हटाते हुए पूछा, कैसे हो सावन?
अचानक नाम लेकर पुकार रही अम्मा को मैं आश्चर्य से देखने लगा।
अरे! “आपकों मेरा नाम कैसे मालूम है?” आप मुझे जानती है? हां बेटा कुछ ऐसा ही महसूस हो रहा है।
तुम्हें याद हैं पांचवीं तक तुम रघुवीर के साथ खेलने घर आते थे। तुम्हारी दोस्ती रघुवीर के साथ ज्यादा थी। तुम्हें देखते ही मैं बच्चों के बचपन की ओर खींचती चली गई। लेकिन दसवीं के बाद पापा ने अपने जैसा बनाने की धुन में रघुवीर को सेना में भर्ती कर दिया। कहते रोने लगी। मैं सहज उसके पास बैठ गया। वह लड़का चला गया था। अम्मा खुलकर बातें करने लगी थी। रघुवीर और उसके पापा हमें छोड़कर चल बसे।
महावीर तो मना करने पर भी देश सेवा की लगन से फौज में शामिल हो गया था। इसी खिड़की के पास बैठ उसने मेरा हाथ पकड़कर कहा था माँ मैं वापस लौटूंगा तब आपको अपनें साथ ले जाऊंगा। आज दो साल हो गए। उसका सही पता कोई नहीं दे पा रहा है।
उसके आंसू पोंछते हुए मैंने कहा, अम्मा महावीर जिंदा हैं। मैं भी आपका बेटा हूं ना तो मेरे साथ चलो साबरमती। मेरी नौकरी है। वहां एक कमरा है आप आराम से रहना मैं महावीर का पता लगाने का पूरा प्रयास करूंगा। कुछ दिन बाद मेरी मम्मा भी आ जायेगी। वो आपसे मिलकर बहुत खुश होगी।
मेरी बातों का उसपर कितना असर हुआ होगा मुझे पता नहीं “लेकिन मेरे निर्णय पर मेरा मन चमत्कारी रूप से संतुष्ट हुआ था।”
साबरमती आते ही मैंने अम्मा की सामग्री बांध दी उनके मना करने पर भी साथ में हाथ पकड़ कर ले चला था। पीछे मुड़कर एक बार रेलगाड़ी की खिड़की को गौर से देखा था। मानो रघुवीर हाथ हिलाते मुस्करा कर कहा रहा हो, दोस्त “वेल डन” चातक के भांति अम्मा की नजरें मुझे देख रही थी। मैं दूर क्षितिज को निहार रहा था। जिसमें आकाश और धरती के सुखद मिलन का अनुभव हो रहा था।

परिचय :- अमिता मराठे
निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश
शिक्षण : प्रशिक्षण एम.ए. एल. एल. बी., पी जी डिप्लोमा इन वेल्यू एजुकेशन, अनेक प्रशिक्षण जो दिव्यांग क्षेत्र के लिए आवश्यक है।
वर्तमान में मूक बधिर संगठन द्वारा संचालित आई.डी. बी.ए. की मानद सचिव।
४५ वर्ष पहले मूक बधिर महिलाओं व अन्य महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए आकांक्षा व्यवसाय केंद्र की स्थापना की। आपका एकमात्र यही ध्येय था कि महिलाओं को सशक्त बनाया जा सके। अब तक आपके इंस्टिट्यूट से हजारों महिलाएं सशक्त हो चुकी हैं और खुद का व्यवसाय कर रही हैं।
शपथ : मैं आगे भी आना महिला शक्ति के लिए कार्य करती रहूंगी।
प्रकाशन :
१ जीवन मूल्यों के प्रेरक प्रसंग
२ नई दिशा
३ मनोगत लघुकथा संग्रह अन्य पत्र पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में कहानी, लघुकथा, संस्मरण, निबंध, आलेख कविताएं प्रकाशित राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था जलधारा में सक्रिय।
सम्मान :
* मानव कल्याण सम्मान, नई दिल्ली
* मालव शिक्षा समिति की ओर से सम्मानित
* श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
* मध्यप्रदेश बधिर महिला संघ की ओर से सम्मानित
* लेखन के क्षेत्र में अनेक सम्मान पत्र
* साहित्यकारों की श्रेणी में सम्मानित आदि


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें...🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *