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मां

आस्था दीक्षित
 कानपुर (उत्तर प्रदेश)
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तुमसे अलग हो कर,
ये मन न रह पाता है मां
कामों में उलझा रहता,
और याद करता मां

आंखों में सपने भरे,
पर सपने तुमसे है
तुम मुझमें कुछ यूं बसीं,
सब अपने तुमसे है
सपना पूरा करने में,
तुम साथ देना मां
तुमसे अलग हो कर,
ये मन न रह पाता है मां

रात को सर पे तेरी थापे,
याद आती है
आंगन की वो किलकारी,
भी याद आती है
जब भी भूखा सोया हूं,
तुम याद आती मां
तुमसे अलग हो कर ये
मन न रह पाता है मां

अंधियारा होने पर मां,
तुम लोरी गाती थी
राजा बेटा कह के,
मेरा सर सहलाती थी
उन लम्हों मैं में फिर से
जीना चाहता हूं मां
तुमसे अलग हो कर,
ये मन न रह पाता है मां

शाम को घर वापस आता,
बस ताला मिलता है
पूरा दिन तुमने क्या किया,
न कोई कहता है
तेरा चेहरा सोच कर,
सब सह लेता हूं मां
तुमसे अलग हो कर ये
मन न रह पाता है मां

परिचय –  आस्था दीक्षित
पिता – संजीव कुमार दीक्षित
निवासी – कानपुर (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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