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सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश)
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हमारे बाबा महाबीर प्रसाद
हमें अपने साथ ले जाकर
विजय दशमी पर
हमें बताया करते थे
नीलकंठ पक्षी के दर्शन भी कराते थे,
समुद्र मंथन से निकले
विष का पान भोले शंकर ने किया था
इसीलिए कंठ उनका नीला पड़ गया था
तब से वे नीलकंठ भी कहलाने लगे।
शायद तभी से विजयदशमी पर
नीलकंठ पक्षी के दर्शन की
परंपरा बन गई,
शुभता के विचार के साथ
नीलकंठ में भोलेनाथ की
मूर्ति लोगों में घर कर गई।
इसीलिए विजयदशमी के दिन
नीलकंठ पक्षी देखना
शुभ माना जाता है,
नीलकंठ तो बस एक बहाना है
असल में भोलेनाथ के
नीले कंठ का दर्शन पाना है
अपना जीवन धन्य बनाना है।
मगर अफसोस अब
बाबा महाबीर भी नहीं रहे,
हमारी कारस्तानियों से
नीलकंठ भी जैसे रुठ गये
हमारी आधुनिकता से जैसे
वे भी खीझ से गये,
या फिर तकनीक के बढ़ते
दुष्प्रभाव की भेंट चढ़ते गये।
अब न तो नीलकंठ दर्शन की
हममें उत्सुकता रही,
न ही बाग, जंगल, पेड़ पौधों की
उतनी संख्या रही
जहां नीलकंठ का बसेरा हो।
तब भला नीलकंठ को कहाँ खोजे?
पुरातन परंपराएं भला कैसे निभाएं?
पुरातन परंपराएं हमें
दकियानूसी लगती हैं
तभी तो हमनें खुद ही
नील के कंठ घोंट रहे हैं,
बची खुची परंपरा को
किताबों और सोशल मीडिया के सहारे
जैसे तैसे ढो रहे हैं,
नीलकंठ दर्शन की औपचारिकता
आखिर निभा तो रहे हैं
पूर्वजों के दिखाए मार्ग पर चल रहे हैं,
आवरण ओढ़कर ही सही
विजयदशमी भी मना रहे हैं।
परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
संप्रति : निजी कार्य
विशेष : अधीक्षक (दैनिक कार्यक्रम) साहित्य संगम संस्थान असम इकाई।
रा.उपाध्यक्ष : साहित्यिक आस्था मंच्, रा.मीडिया प्रभारी-हिंददेश परिवार
सलाहकार : हिंंददेश पत्रिका (पा.)
संयोजक : हिंददेश परिवार(एनजीओ) -हिंददेश लाइव -हिंददेश रक्तमंडली
संरक्षक : लफ्जों का कमाल (व्हाट्सएप पटल)
निवास : गोण्डा (उ.प्र.)
साहित्यिक गतिविधियाँ : १९८५ से विभिन्न विधाओं की रचनाएं कहानियां, लघुकथाएं, हाइकू, कविताएं, लेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि १५० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक कहानी, कविता, लघुकथा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन, कुछेक प्रकाश्य। अनेक पत्र पत्रिकाओं, काव्य संकलनों, ई-बुक काव्य संकलनों व पत्र पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल्स, ब्लॉगस, बेवसाइटस में रचनाओं का प्रकाशन जारी।अब तक ७५० से अधिक रचनाओं का प्रकाशन, सतत जारी। अनेक पटलों पर काव्य पाठ अनवरत जारी।
सम्मान : विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा ४५० से अधिक सम्मान पत्र। विभिन्न पटलों की काव्य गोष्ठियों में अध्यक्षता करने का अवसर भी मिला। साहित्य संगम संस्थान द्वारा ‘संगम शिरोमणि’सम्मान, जैन (संभाव्य) विश्वविद्यालय बेंगलुरु द्वारा बेवनार हेतु सम्मान पत्र।
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